लोक जागरण और हिन्दी साहित्य | Lok Jagaran Aur Hindi Sahity
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामचन्द्र शुक्ल - Ramchandar Shukla
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका / है.
ही उसके विरुद्ध 'कोलाहल' आरम्भ कर दिया, परिणाम यह हुआ कि पुस्तक
शुक्ल जी में जीवन काल में प्रवाशित न हुई । उसकी भूमिका में विश्वनाथ प्रसाद
मिश्र ने लिखा है. * अरोचकी वृत्ति दाले पण्डिदो को उनकी बहुत-सी बातें न
रुचेंगी, वे स्वय भी पण्डितों के कोलाहल की चर्चा किया करते थे। उन्होंने
कदाचित् अपनी यह पुस्तक वहुत पहले सवद्धित और परिष्कत रूप मे प्रकाशित
करा दी होती, यदि पण्डित मडली ने विलायती माल कहकर सनकी चिन्तना की
चर्चा न चलाई होती 1”
उस कोलाहल में नये नये पण्डित बरादर शामिल होते रहे है--यह शुक्ल जी
के चिन्तन की जीवन्त गतिशीलता वा प्रमाण है। इस चिंस्तन का महत्त्व मुलत
उसकी पद्धति मं है, किन्ही विशेष नपे-तुले निप्वपॉँ मे नही । पदार्थविज्ञान, समाज
शास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान, भाषाविज्ञान--शान वी ये सभी शाखाएँ परस्पर
सवद्ध है। इनसे वहुज्ञानसमव्वित दृष्टि प्राप्त करके शुवल जी ने आलोचनः कार्य
सपरन किया । उन्होंने हिग्दी साहित्य का इतिहास के आरम्भ में ही जनता वी
चित्तवृत्ति का सम्बन्ध सामाजिक परिस्थितियों से जोड़ा था। जो लोग साहित्य
को, मनुष्य वी. चित्तवृत्तियों को, समाज से पूरी तरह स्वतन्त्र भानते थे, उनसे
शुक्ल जी मा रास्ता अलग था । उन्होंने सामाजिक परिस्थितियों से साहित्य रचना
का सम्बन्ध यानिक ढंग से नहीं जोड़ा, यह बात उनके इतिहास के हर प्रकरण में
देखी जा सकती है। उन्होंने हिन्दी साहित्य के अध्ययन के लिए अखिल भारतीय
परिप्रेय निश्चित किया था । सूरदास के प्रसग में जयदेव और विद्यापति की
परम्परा और वल्लभाचार्य की भूमिका वा उल्लेख, माधु्यंभाव के विवेचन में
आण्डाल और 'तिरुप्पवदद' बी चर्चा, गुजरात मे मध्वाचायं की ओर बहुत से
लोगो मे शुकने की बात--यहें सब उनके अखिल भारतीय परिप्रेश्य का सूचक है।
जव-तवब वह भारत के घाहर पडीसी देशो के सास्कृतिक आन्दीलनों की ओर भी
ध्यान देते हैं। ईरान के सूफी बवियों के लिए उन्होंने लिखा था, “खलीफा लोगी
बे बठोर धर्मशासन के वीच भी सूफ्यों वी प्रेममयी वाणी से जनता को भावमग्त
कर दिया ।” (जायसो प्रयावली, पू० १६३) 1
भर्व्ति काव्य के विवास के सिलसिले मे शुक्ल जी ने लिखा था कि देश में
मुसलमानों वा राज्य प्रतिष्ठित हो जाने पर जनता में उदासी-सी छाई रही, हताश
जाति वे लिए भगवान वो शविन और बच रणा की ओर ध्यान ले जाने के अतिरिवत
दूसरा मागें हो क्या था ? उन्होंने सुसगत रुप से इस सुथ के अनुसार इतिहास नहीं
लिखा । इससे उत्टी दिशा में 'चलते हुए उन्होंने वार-बार इस बात पर जोर दिया
कि “प्रेमस्वरूप ईश्वर को सामने सावर भक्त व वियो मे हिन्दुओं और मुसलमानों
दोनों थो मनुष्य के सामान्य रुप में दिखाया और भेदभाव को हटादर पीछे वर
दिया 1” (इतिहास, पुृ० ७५-०६) । इस स्थापना पर सबसे अधिक जोर जायसी
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