बप्पारावल | Bapparawal

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Bapparawal by मनु शर्मा - Manu Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२१. ) नहीं गिरती । सरदार ने वार बन्द किया । कोलाइल के साथ भीड़ आगे बढी, पर सरदार ने सबको रोक दिया । बुद्ध मरने के पहले एक बार झपनी सारी शक्ति लगाकर पुनः चीख उठा । किन्तु उसकी झावाज स्पष्ट सुनायी न पडी । कदाचित बूढा कुछ ऐसा ही कह रहा था--“अत्याचार से अत्माचार का अन्त नहीं होता । मेल से मेल धाई नहीं जाती भगवान्‌ से डरो । अपने शाप से ढरो । झागे अ्ानि वाले इतिहास से डरो ।” किन्तु बृद्ध की ध्वनि उस कोलाहल में जैसे खो सो गयी । किसी ने कुछ ्यान नहीं दिया । नक्कार खाने मरे तूती की झ्ावाज का क्या महत्व ? लोग पुनः प्रवेश द्वार की शोर आगे बढ़े, पर सरदार ने सबको रोक दिया । भोड नियंत्रण के बाहर थी । हूँ के खेत में फगुनहट के विद्रोही फोको को तरह भीड़ का रेला कुछ झ्रागे बढता और फिर समाप्त हो जाता । सरदार ने केवल तीन साथियों को चुना और किले के बाहरी ऊेंचे चद्ूतरे पर खठा होकर बोला --'मित्रो, इस प्रकार घबराने और कोलाइल करने से कुछ लाभ न होगा । श्राप जहाँ हो, वही शान्ति से खडे रहिए । हम लोग झन्दर जाते हैं । राजकुमार का पता लगाते हैं । और जब तक हम लौट कर न आये तब तक झाप चुपचाप खडं रदह्विएई--भगवान हमारा कल्याण करें ।” इतना कहद कर सरदार चबूतरे से नीचे उतरने को हुआ, किन्तु भीड चिज्लायी-'“हम झपने सरदार को अकेले अन्दर जाने नहीं देंगे ।”” सरदार पुनः लौटा दर उसी प्रकार ऊँचे स्वर से बोला--झाप विश्वास रखे । मैं अकेला नहीं हूँ। तीन साथी मेरे साथ है। मेरी की मेरे साथ है। झापका झाशीर्वाद और परमात्मा की कृपा मेंरे साथ है ।”




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