तीन प्रश्न (मौलिक उपन्यास ) | Teen Prashn (Maulik Upanyas)

Teen Prashn (Maulik Upanyas) by मनु शर्मा - Manu Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बह दारोगाजी से भी श्रपने जेवरों के बारे में कद सकती है तत्र सब गड़बड़ हो जायगा । उ्च्छी बात हैं । मेनेजर श्रत्यन्त घीरे से बोला । प्रघान गम्मीर मुद्रा में अब भी सोचता रहा । कोई भी उपाय हर परिस्थिति में ठीक नददीं होता । उसे स्वयं लगा उसने इस समय जो कुछ उपाय बताया है बद्द इस स्थिति में ठीक नहीं है । प्रधान किसी भी कार्य का आरम्भ भाव श्र भावना से प्रेरित होकर करता है किन्तु बाद में उसकी बुद्धि जागती है । इसी से उसके विचारों में कमी सन्तुलन नहीं रहता । इस समय भी उसने एक च्ण में श्रपना विचार बदल दिया श्र मेनेजर से कहा -- इस समय यद्द सब्र कुछ भी मत करो । मैं खुद कोशिश करू गा | वह चुपचाप चला गया। मैंने सुराख से आँखें दृटायीं । ध्यान- मग्न रहने के कारण इतनी देर से गदन भुकाए था । श्र मेरी गदन में विचित्र पीड़ा दो रददी थी । मेनेजर रामसमुभ से मै बहुत पहले से ही परिचित हूँ। सचाई छिपाने से क्या लाभ १ यों तो कहने में शम श्राती है कि उसका करीब- करीब सारा जीवन मेरे ही मुद्दल्ले में बीता हैं। में उसकी राई रती जानता हूँ । पर आपको उस पूरे पचड़े से क्या मतलब ? श्राप इतना दी समभिए कि वदद पहले पुलिस में नौकर था । वह भी उसका जमाना था। खूब तपता था । मोछ पर ताव देकर वह पट्टा जवान पुलिस की वर्दी में जब॒सिकलता था तत्र बड़े बड़े गुण्डे झुककर बावू साइन सलाम कहते थे। सबज्जनों की शराफ्त भी उसे देखकर कौँप जाती




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