युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरी | Yugpradhan Shrijindattsuri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta
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भंवरलाल नाहटा - Bhanwar Lal Nahta
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राघ्चथन २१
सब, जि चदफचिि कि ७ लीक ९... हि १० अंक हा शा शोध टाकट अल ही किला किक भी टली हि, लव पक .
एव पूजा लाखों जेन प्रति दिन किया करते हैं । भारत के प्राय:
सभी प्रसिद्ध स्थानों मे जहा जेनों का निवास है 'दादावाड़ी' के नाम
से आपके मन्दिर अवस्थित हैं । भक्तोंके मनोवाध्छित पूर्ण करने
में आप साक्षात् कल्पतरु हैं ।
जेन कवियोंने आपकी स्तवना में कई स्तुति; स्तोत्र; छन्द,
गीत, लघुरास आदि सेकडों की सख्या में बनाये है. उनमें
से कुछ दादाजी की स्तवनावढी आदि में प्रकाशित हो गए हैं पर
भभी अप्रकाशित साहित्य का ढेर छगा पढ़ा है । उन्हें सम्रह कर
प्रकाशित करने की इच्छा रहते हुए भी इस लघु अर थ में तो अधिक
साहित्य देना छोटे सिरपर बडी पगड़ी रखने जैसा प्रतीत कर हमें
अपनी इच्छा का सवरण करना पडा है । इस में परिशिष्ट न० ३
में केवल ४ रचनाएं दी गई हैं। जिनमें से प्रथम जेसलमेर
भडार की ताडपतन्नीय प्रति से छी गई हे वह प्रति त्रुटित होने के
कारण अधूरी ही दी जा सकी है । किसी सन को इसकी पूरी
प्रति मिले तो हमे सूचित करने की कृपा करें ।
आभार प्रदरशन--
प्रस्तुतः चरित्र लेखन एव सपादन में जिन जिन बिघ्वजनों की
सहायता प्राप्त हुई है उन सब का हार्दिक आभार माने बिना हम
“ऋ इनमें से कविपल्दर कृत पट्टावली षटपद्; ज्ञानइष कृत छप्पय, जिनदत्तसुरि
स्तुति आदि दमने अपने ऐतिहासिक जेन काव्य संग्रह मे प्रकाशित की हैं ।
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