संक्षिप्त सूरसागर | Sankshipt Soorsagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
572
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[१० |
प्रकार भक्ति को सब ज्ञान, कर्म, तप, ब्रत, तोर्थ, येग, यज्ञ झाड़ि पर
प्रधानता दी है--
न प्रेतो न पिशाचा वा राक्षसा वा सुरोपि वा ।
भक्तियुक्तमनस्कानां स्पर्शने न श्रशुभंवेत् ॥ १७ ।।
न तपामिने वेदेश्व न ज्ञानेनापि कर्मणा ।
हरिहि साध्यते मक्त्या प्रमाण तन्न सोपिका: ॥ १६८ ॥
नणां जन्मसहस्रण भक्ती प्रीतिष्ठि* जायते ।
कली भक्ति: कला भक्तिमक्तया कुष्या: पुर: स्थित: ॥ १३ ॥
भक्तिद्रोहकरा ये व ते सीदन्ति जगत्ये ।
दु्वासा दुमखमापननः पुरा भक्तिविनिन््दुक: ॥ २० ॥
'लं घतेरलें तीथेरलं यागेर लें सगे: |
लं ज्ञानकथालापैभंक्तिरेकेव मुक्तिदा ॥ २१ ॥
श्रीमदुभागवत-सादात्म्य अध्याय २ |
भस्तु, भक्ति की यह घारा प्राचीन समय से देश में बह रही थी |
मुसछमान घमे में भक्ति
सुसलमानें के झाने पर इस धारा ने मुसलमान सक्तिम्मायं की
घारा से सज्ञम किया ।. मुदम्मद ने उपदेश दिया था कि परमेश्यर
एक है । परमेश्वर के प्रेम में सुदइर्मद् मस्त है जाता था | आउबीं
सदी में खुरासान श्राबू सुस्जिम शादि सन्त परमेश्वर के प्रेम में पेसे
त्लीन दो गये कि झपने को ही परमेश्वर सम माने कोगे । परमेश्वर को
उन्होंने इस सरहद अपना लिया था, परमेश्वर को ऐसा ार्मन्समर्पण
कर दिया था, परमेश्वर में वे ऐसे तछीन हा गये थे कि भेद-भाव ही सिट
गया था । फारस के घुनिया सन्त इलाज ने इस मक्ति-मागं को सुम्य-
वस्थित करके सूफी घर्म का रूप दे दिया । प्रेम में मस्त देकर वह
चिट्लाता था कि मैं सत्य हूँ भ्रथात् परमेश्वर हूं; जो वैदान्तिक 'तस्वमसि'
का स्मरण दिलाता है। इछाज लिखता है कि जा कोई तप से भपती
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