संक्षिप्त सुरसागर | Sankshipt Surasagar

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Sankshipt Surasagar by बेनीप्रसाद - Beniprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ श२ 1 एक घड़ी आधी घड़ी, आधी हूँ से आध। कबीर संगति साधु की, के कोटि अपराधु ॥ कुसखग की बैत्ती दी घेर निन्‍दा की है । तत्पक्षाव्‌ कबीर ने काम, क्रोध, लोभ, मोह, मान इत्यादि को छोड़ने का उपदेश दिया है; शोल, च्यमा, सन्‍्तोष, घीरज, दीनता, दया, सत्य, विचार, विवेक इत्यादि सदुगुण के ग्राह्म बताया है;£ । रैदास, घना, सेन, पीपा, धरमदास अपने गुरु-भाइयें। पर अर्थात्‌ ग़मानन्द के अन्य शिष्य रैदास चमार, धना जाट, सेन नाई, राजा पीपा पर कबीर का बड़ा असाव पड़ा । उनमें कबीर की प्रतिभा नहीं है पर उनके पदों ओर भजनों सें कबीर के भाव, विचार और आदर्श बराबर झलकते हैं। कबीर के प्रधान शिष्य घरमदास ने भी भक्तिपूर्वक गुरु का अभुकरण किया है|। इस सुधार-परम्परा का प्रवाह नानक को रचना में सतत स्मेरणीय महत्त्व पादा है। नानक के भजनों में वही एकेश्वरवाद है, भक्ति अर्थात्‌ सुमिरन, शब्द, नाम--सदूगुरु, सत्सड्र की वही मदिसा है, जप तप, & कबीर के जीवन आर उपदेश के लिए देखिए कबीरकसाटी, बीज़क (जिसके अनेक संस्करण प्रकाशित हुए हैं), कवीरसाखीसंग्रह (बेल्वेडियर प्रेस, प्रयाग); अयेध्यासिंद उपराध्याय-द्वारा सल्टलूलित कवीरवचनावली । सिर्खों के आदिय्रन्थ में कबीर के बहुत से भजन दिये हुए हैं | वेब्वेडियर ग्रेस द्वाता भकाशित कवीरशद्धावली के अधिकांश शब्द कबीर के नहीं हैं । बेह्ूटेश्वर प्रेस-द्वारा प्रकाशित बेधसागर के, पहले भाग का छोड़कर, शेष भागों की रचना भी कबीर की नहीं है। राजपूताना में कई सजने के पास कबीर की बहुत सी अ्प्रकाशित रचना माजूद है । न पद बझुत करने के लिए यहां स्थान नहीं है। जिज्ञासु आदि- प्रन्ध, रेदास की वानी, धरमदास की वानी, नाभाजी का भक्तमाऊ पूर्व अन्य सक्तनाल देखें ६ फल




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