चंदन मूर्ति | Chandan Murti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.55 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आच्छुन्र कर डाला 1! रात को ठीक से नीद नही आती 1 यदि तन्द्रापसी
आा भी जाती तो छुरन्त ही ट्रट जाती । ट्ट्ते ही देवदत्ता की याद हो
आती; न जाने क्या-क्या सोच जाता । व्यथं है यह सब सोचकर उसे दूर
करने की चेष्टा करता | परमुहूत्त मे देखता वेलाभूमि के
अपसृयमान जल की भॉति वह टुणुने वेग से लोटकर मेरे मानस-तट से
टकरा उठता ।
मे जिसके हाथ पुष्प-मालादि राजमहल मे प्रेषित करता, देवदत्ता
प्रतिदिन ही उससे मेरे विषय में पूछती । वह भी मेरे कहे अनुसार-* मै
उस्वस्थ हूँ? वहाँ कह आता 1
नहीं जानता देवदत्ता कों इस वात पर विश्वास होता था या नही ।
हो सकता है पहले कर भी लिया हो । किन्ठ उस दिन तो आश्चयं-
चकित ही हो गया जबकि वह बिना किसी पु सूचना के मेरे मालंच मैं
उपस्थित हुई । मैं उस समय पारिजात प्रुष्पो की आलवाल मे जल-
सिंचन कर रहा था ।. सहसा “दत्त' पुकार सुनकर पीछे सुडा । देखा
वह एक शाखा पर हाथ रखे श्यामलता की भाँति सम्सुख कुछ
झुकी-सी खडी थी । पथश्रम के कारण उसका सुखमंडल स्वेद-विन्डुओ
से परिपृण था ।
देवदत्ता के कण्ठ-स्वर को सुनते ही पुव की भाँति रोमाच हो आया |
मेरी देह की समस्त तन्त्रियाँ उस स्वर माधुरी से ध्वनित हो उठी । मन-
ही-मन सकल्प कर रखा था कि जव भी उससे मिलूँगा तो कुछ कड़ी
वात कहूँगा । किन्दह समय पर सब छुछ विस्मृत हो गया 1. मेरा समस्त
शरीर एक अननुभूत आनन्द से उल्लसित हो उठा । देह का सम्पूर्ण ताप
चन्दन मुर्ति
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