चंदन मूर्ति | Chandan Murti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : चंदन मूर्ति  - Chandan Murti

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about देवेन्द्रराज मेहता - Devendra Raj Mehta

Add Infomation AboutDevendra Raj Mehta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
आच्छुन्र कर डाला 1! रात को ठीक से नीद नही आती 1 यदि तन्द्रापसी आा भी जाती तो छुरन्त ही ट्रट जाती । ट्ट्ते ही देवदत्ता की याद हो आती; न जाने क्या-क्या सोच जाता । व्यथं है यह सब सोचकर उसे दूर करने की चेष्टा करता | परमुहूत्त मे देखता वेलाभूमि के अपसृयमान जल की भॉति वह टुणुने वेग से लोटकर मेरे मानस-तट से टकरा उठता । मे जिसके हाथ पुष्प-मालादि राजमहल मे प्रेषित करता, देवदत्ता प्रतिदिन ही उससे मेरे विषय में पूछती । वह भी मेरे कहे अनुसार-* मै उस्वस्थ हूँ? वहाँ कह आता 1 नहीं जानता देवदत्ता कों इस वात पर विश्वास होता था या नही । हो सकता है पहले कर भी लिया हो । किन्ठ उस दिन तो आश्चयं- चकित ही हो गया जबकि वह बिना किसी पु सूचना के मेरे मालंच मैं उपस्थित हुई । मैं उस समय पारिजात प्रुष्पो की आलवाल मे जल- सिंचन कर रहा था ।. सहसा “दत्त' पुकार सुनकर पीछे सुडा । देखा वह एक शाखा पर हाथ रखे श्यामलता की भाँति सम्सुख कुछ झुकी-सी खडी थी । पथश्रम के कारण उसका सुखमंडल स्वेद-विन्डुओ से परिपृण था । देवदत्ता के कण्ठ-स्वर को सुनते ही पुव की भाँति रोमाच हो आया | मेरी देह की समस्त तन्त्रियाँ उस स्वर माधुरी से ध्वनित हो उठी । मन- ही-मन सकल्प कर रखा था कि जव भी उससे मिलूँगा तो कुछ कड़ी वात कहूँगा । किन्दह समय पर सब छुछ विस्मृत हो गया 1. मेरा समस्त शरीर एक अननुभूत आनन्द से उल्लसित हो उठा । देह का सम्पूर्ण ताप चन्दन मुर्ति




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now