दो बहनें | Do Bahne

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Do Bahne by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravindranath Thakurश्री रामनाथ - Shri Ramnath

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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रामनाथ सुमन - Ramnath Suman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इच्छा होते ही उसे छोड़ा जा सकता है। श्रौर कुछ न हो, स्त्री. का ऋण तो उसे चुकाना ही पड़ेगा ; उसके बाद कहीं सुस्थ होकर धीरे+ : धीरे चलने का समय शझ्राएगा.। बाएं हाथ में रिस्ट-वाच, सिर पर सोला हुँ, ग्रास्तीन चढ़ाएं हुए, खाकी,पैँट पर चमड़े की कमर-पेटी पांव में मोटे सोल के जूते भर श्रांखों पर धूप का रंगीन चदमा चढ़ा- कर शश्ांक काम में जुट गया । स्त्री का ऋण पुरा होने पर झा गया. है फिर भी वह स्टीम कम करना नहीं चाहता; इस समय उसका मन गमं हो उठा है । इससे पहले घर-गृहस्थी के आय-व्यय की घारा एक ही नाले बहती थी ; अब उसकी दो शाखाएं हो गई । एक बैंक की श्रोर गई ; दूसरी घर की श्रोर । शर्मिला को पहले जितना ही घन सिलता है ; - वहां किसका क्या देना-पावना है, इससे दाशांक को कुछ मतलब नहीं । इसी प्रकार व्यवसाय-सम्बन्दी चमड़े की जिल्दवाला खाता सरमिला के लिए दुर्गम किले जैसा है । इससे कोई हानि नहीं किन्तु स्वामी के व्यावसायिक जीवन का रास्ता दामिला की घर-गुहस्थी के इलाके के वाहर हो जाने के कारण उस श्रोर से उसके विधि-विधान की उपेक्षा होने लगी । वह विनय करती, “इतनी ज्यादती मत करो, दारीर टूट जाएगा ।” परन्तु कोई फल नहीं होता । श्राइचयें तो यह है कि तचीयत भी नहीं खराब होती । स्वास्थ्य के लिए उद्देग, विश्वाम के अ्रसाव पर श्राक्षेप, आराम के साथ खाने-पीने, सोने-उठने की श्रोर ध्यान न देने पर भुंकलाहट इत्यादि दाम्पत्य की सभी उत्कंठाओओं की उपेक्षा करके शद्मांक तड़के ही श्रपनी संँकेंडहैंड फोर्ड गाड़ी लेकर निकल जाता है; दो-ढाई बजे काम पर से लौटकर श्राता है श्रौर जल्दी- जल्दी कुछ खाकर फिर चला जाता है । एक दिन उसकी मोटरगाड़ी किसी श्ौर गाड़ी से भिड़ गई। खुद तो बच गया पर गाड़ी को काफी क्षति पहुंची । मरम्मत के लिए भेज दी । शमिला वहुत चिन्तित हो उठी । रुघे गले से बोली, “” तुम स्वयं गाड़ी नहीं हांक सकोगे ।” श्दे




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