महाप्रयाण | Mahaprayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
223
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ महा-प्रयाण
जिन्दगी पर गदरी छाप छोड़ गये, उन्हें दत्यधिक आकर्षित कर गये;
हु हि पं क मर
-कवि रायचन्द वैक्तिम सम्पकं से. टाल्सटाय श्र रस्किन शपनी
पुस्तकों से |
बश्चई सें वकील के रूप में
गांधी जी मे पहने-पहल बस्बई में वकालत शुरू की; किम्तु
सफलता न मिली । चार पांच महीने से अधिक अ्राप बम्बई में नहीं रह
सके । कारण, खर्च श्रढ़ रहा था शरीर द्ामदनी उतनी होती नहीं थी |
छा 1! (घघन्ल ८्पए में आपको एक सुकदमा पिला | श्राप
मुद्दुई-पच्च के चकील थे : तीस रुपये की फीसपर काम करने को तैयार हुए
थे | मुकदमे की जिरद शुरू हुई । मुद्दालह के गवाद से सवाल करने को
उठे, पर कुछ बोन्न न सके । उन्हें जैसे चक्कर श्राने लगा । कोई सवाल
ही उन्हें नहीं सूझता । अपनी शसमथता कबूल करते हुए अपने मुद्दई
को फीस का रुपया बापिस कर दिया आर सलाद दी कि वह पटेल सादर
से झ्पने पच्च की ब्हुस कराये ।
तबसे श्राप फिर कभी तत्र तक कोट न गये जब' तक कि आप दक्षिण
शरफ्रीका न चले गये | बम्बई में एक श्रौर सुझदमा इनके हाथ में या
था | उसमें श्रापकों सिप श्रर्जी तंयार करनी थी । श्रापकों विश्वास हुआ
कि श्राप यह काम गच्छी तरह कर सकते हैं !
तत्पश्नात् यह तय हुब्रा कि गांधी जी राजकोट में ही रहेंगे । उनके
बढ़े भ'ई जो स्वयं वकील थे उन्हें श्रर्जा तैयार करने का काम दिया करेंगे ।
इस तरह श्राप प्रति सास शसत ३००, रु० की आय करने लगे ।
एक बार गांवी जी के भाई से गांधी जी से राजकोट के राजनीतिक
दूत से श्रपनी सिफारिश करने को कहा । गांधी जी इस व्यक्ति से
इडलेण्ड से ही परिचित थे | झ्निच्छा रहते हुए; भी भाई की खातिर
झाप उससे मिलने गये | पर दूतने गांधी जी को अभद्रता पूर्वक बह्दं से
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