मध्यकालीन काव्य | Madhyakaleen Kavya

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मुरलीधर श्रीवास्तव - Murlidhar Shrivastav

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विनय कुमार - Vinay Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज मध्यकालीन काव्य विचार नहीं हो सकता । सबकी भाषा की अपनी विशेषताएँ है । एक सन्त की बानी का दूसरे प्रदेश में प्रचार हो जाने के वाद उस सन्त की भाषा पर स्थानीय भाषा का रंग चढा दिया जाता था ।. मुख्य उद्दे्य था सन्त के उपदेश का प्रचार और प्रसार, सुल-भाषा की शुद्धता की रक्षा इप्ट नहीं थी । अतः सन्त-बानी की भाषा मे व्यवस्था, स्थिरता और एकरूपता नहीं मिलती ।. इन सन्तों ने कही-कही खड़ीबोली का प्रयोग किया । इसका एक कारण यह भी है कि इनके उपदेश हिन्दू-मुसलमान दोनों के लिए थे।. ये सत्यघर्म के उपदेष्टा थे, किसी धर्म विशेष के प्रचारक नहीं थे । दक्खिनी का पद्च १४वी शती के बाद मिलने लगता है । सन्त-साहित्य में खड़ीबोली के छिंटपुट प्रयोग मिलते है । हिन्दुओं के बीच खडीबोली वहत दिनों तक “काव्य की उपेक्षिता' बनी रही । अवधी और ब्रजभाषा ही हिन्दू कवियों की दुलारी या लाडली वोलियाँ थी 1 मध्यकाल मे जब बाद में रीतिकाव्य रचा जाने लगा तो श्छंगारी काव्य के नायक- नायिका-रूप में कृप्णा और राधा प्रतिप्ठित हुए । इसके पुर्वे कृप्णाभक्त कवियों ने राधा- कृप्ण-लीला का गान बव्रजभापषा में ही किया था ।. अत: रीतिंकाव्यघारा में ब्रजभाषा ही सामान्य काव्यभाषा बत गयी ।. एक समृद्ध काव्यभापषा के रूप मे ब्रजभापा को कुप्यभक्ति-काव्य में ही स्थान मिल चुका था, अत: रीतिंकाल में अवधी ब्रजभाषा से हार गय्री । अवधी के सबसे प्रतापी और तेजस्वी कवि तुलसीदासजी भी 'विनयपत्रिका' 'गीतावली' आदि मे ब्रजभाषा का प्रयोग कर काव्यभापषा के रूप मे उसकी महत्ता या उपयुक्तता को स्वीकार कर चुके थे । इस प्रसंग में यह उल्लेख्य है कि जब फोर्ट विलि- यम कललिज के अंगरेज अधिकारियों ने हिन्दी के खडीबोली-रूप में गद्य लिखाने का निसचय किया, तब उसके भाषा-मु शी लल्लूजी लाल कवि ने ब्रजभाषा से खडीबोली में उल्था या रूपान्तर किया था । जब विद्यापति की पदावली चैतन्यप्रवतित भक्ति- आन्दोलन में सादर स्वीकृत हुई तब उसे भी वगाल ने “ब्रजबुलि' के नाम पर ग्रहण किया । यह भी इस वात का प्रमाण है कि वब्रजभाषा उस समय अवधी से अधिक लोक- प्रिय हो चुकी थी । कवियों मे ब्रजभाषा की ओर झुकाव का एक कारण यह भी था कि न्रजभाषा में गीत-दैली या पदावली-दौली का विकास हो चुका था। अवधी ने प्रवन्धकाव्य की दिशा में ही, 'पद्मावत' और 'मानस' की रचना के बाद, अपनी उत्कृष्टता प्रमाणित की थी । कुष्णकाव्य श्वंगारी काव्य के सद्श होने के कारण भी अधिक लोक- प्रिय था । अष्टछाप के कवियों द्वारा संवधित और रीतिकालीन आचायों और कवियों द्वारा पोषित ब्रजभाषा सम्पूर्ण हिन्दी-क्षेत्र में फैल गयी । राजस्थान के राणावण की मीरॉंवाई ने कुछ रचनाएँ अपनी मातृभाषा मेवाडी में की, पर जब वे अपने आराध्य की लीलाशूमि ब्रज में आयीं तव उन्होंने भी ब्रजभाषा मे पद रचे । विद्यापति ने अपनी मातृभाषा या देशभाषा मैथिली में पदावली के पद रचे । इन




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