सभ्यता महारोग - उसका निदान और निवारण | Sabhyata Maharog - Usaka Nidan Aur Nivaran
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
406
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
भारत के स्वाधीनता आंदोलन के अनेक पक्ष थे। हिंसा और अहिंसा के साथ कुछ लोग देश तथा विदेश में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जन जागरण भी कर रहे थे। अंग्रेज इन सबको अपने लिए खतरनाक मानते थे।
26 सितम्बर, 1886 को खतौली (जिला मुजफ्फरनगर, उ.प्र.) में सुंदरलाल नामक एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। खतौली में गंगा नहर के किनारे बिजली और सिंचाई विभाग के कर्मचारी रहते हैं। इनके पिता श्री तोताराम श्रीवास्तव उन दिनों वहां उच्च सरकारी पद पर थे। उनके परिवार में प्रायः सभी लोग अच्छी सरकारी नौकरियों में थे।
मुजफ्फरनगर से हाईस्कूल करने के बाद सुंदरलाल जी प्रयाग के प्रसिद्ध म्योर कालिज में पढ़ने गये। वहां क्रांतिकारियो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उसका निदान और निवारण
न
द
नहीं कर देते । आाजदिन जहां कहीं हम नजर डालते हैं, अमी- .'
रोकि मदलोंपें अथवा गरीवोंकी गन्दी रलियोंमें, हमें रोगंके ही
चिन्द दिखाई देते हैं और रोगकी ही शिकायतें न्रारों ओर
सुनाई देती हैं । चास्तवमें कहीं कोई एक तन्दुरुस्त मनुष्य मिल
सकतना भी कठिन है । घस ठिहाजसे आाजकलके 'सम्य' अथवा
प्तहजोवयाफ्ता” मजुप्यक्मी हाठत -हर घक्त खाँसी, जुकाम,
गुलवन्द, ठणडी हवाका भोॉंका लग जानेका डर प्रत्यादि--
एक ऐसी हालत है, जो दपारे लिए गौरवका धारण एरगिज
नहीं कही जा सकती । सच्यी चात यह मालूम दोती ए दिए
चावजूद अपने डाक्टरी और चिकित्सा-सम्द्न्पी समग्त
पुस्तकालयों, अपनी सात्दूमात, अपने हुनरों और जीपनरं:
समस्त साधनोंके भी वास्तव्में हम उस दर्जौतव भी अपनी
हिफाजत नहीं बार सचाते, जिस दुर्जेतक कि पशु पार उेते है ।
चास्तवमें पशुओंके सम्वन्धमें थी शायद शैले# एव स्थानपर
चताता है कि--हम “पालतू” पशुओंकी नसलॉंकयो भी तेजीफे
साध खराब दारते जारहे हैं । गायों, घोड़ों, भेड़ों बोर हमपर
विश्वास चारनेवाली देलारी पुसी-दिल्लियोंमें भी दिन-प्रति
ट्नि चीमारियां अधिव्साधघिदा बढ़ती जारदी है। एन्हें घव ऐसे
ऐसे रोग होने ऊरे हैं, जिनका अपनी अधिक जडली हालतमें
हुन्हें पतातका न था |. उत्तमें प्ृथ्वीदरी “लसखस्प” लथवा
जड़्छी सजुप्य-जातियां भी टमारे इस नाशदवार प्रभादसे नहीं
दय पातीं । जटां पादीं इन जातियोंका हमारी “सम्यता से
सम्पदा होता है, च्दां ही दे लोग चेच्दा, घरादखोरी, और बोर
भी ऐसी,एनसे शी अधिक, छुरी चुरी दीसारि्योंसे, जो सभ्यताके
साथ साध उऊती ए, मक्खियोंदी तरह मरने टयते है । घक्सर
तो 'सभ्पता' दया सम्पर्क मार ही इन जड़ी मद॒प्योंद्दी डाति
यॉंफो मिटा देमेके लिए च्याफी होता है।
१.४ ०»
कक बिक सरल गन्स्ट उदे
के प७रर२-१८९९, एक सुयार्य छगरल दावि |
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