श्रमण सूक्त | Sraman Sukt

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Sraman Sukt by श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डर चच्अन्‍्यक ड महुकारसभा बुद्ध जे भवति अणिस्सिया | नाणापिडरया दंता तेण वुच्चति साइुणो | | (दस, १ ८ पूछे जो बुद्ध पुरुष मधूकर के समान अनिशित हैं--किसी एक पर आश्रित नहीं, नाना पिंड में रत हैं और जो दान्त हैं वे अपने इन्हीं गुर्णों से साघु कहलाते हैं| कर -ब्नांबी




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