अध्यात्म रत्नत्रयी | Adhyatmaratnatrayi
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवाँजीव अधिकार
आत्मा न जानि मोदी, बहुतेरे परको झात्मा कहते ।
अध्यवसान तथा विधि, को आतमरूपमें लखते ॥३६॥
कइ श्रध्यवसानोंमें, जीव कहें तीघ्रमंदफलततिको ।
कोई -आात्मा मानें, इन नानारूप देहोंको ॥४०॥
कोई कर्मोदयको, जीव कहें कम पाक सुख दुखको ।
तीव्रमंद अंशोमें, जो नाना अजुभवा जाता ॥४१॥
_ जीवकर्म. ' दोनोंको, मिला हुआ कोइ जीवको जानें ।
अप्टकर्मसं योग, हि, कितने दही जीवको मानें ॥४२॥
. ऐसें नाना दुर्मति, परतत््तोंको हि आत्मा कहते ।
वे न. परमाथवादीं, ऐसा तत््वज्ञ दर्शाते ॥४३।॥।
उन सब परमार्वोको, पुदूगलद्रव्यपरिंतामसे जाये ।
केवलि जिन दर्शाया, केसे वे जीव हो सकते ॥४४॥।
आठों ही कर्मीको, पुदूगलमय हो जिनेन्द्र बतलोते ।
जिनके _ कि उदयका फल, सारा दुखरूप कहलाता ॥४४॥
वे झध्यवसानादिक, जीव .कहे कहीं ग्रन्थमें वद सब ।..
व्यवहारकी हि. दर्शन, लिनवर पूर्व वर्णित हे ॥॥४४॥
. बखसमुदयको राजा इतना विस्टृत चला हुआ कहना
च्यवहारमात्रचर्चा, * निश्वयसे एक नर चूप हे ॥४७॥
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