तीर्थकर महावीर - भक्ति - गंगा | Tirthakar Mahavir - Bhakti - Ganga
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विद्यानन्द मुनि - Vidhyanand Muni
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दे
त्रिदला रानी ने मीठी वार में प्रभात से कुछ समय पहले देखे हुए १६ स्वप्न सुनाए भ्ौर
उनसे प्रकट होने वाला फल राजा सिद्धाथं से पूछा ।
राजा सिद्धार्थ निमित्त शास्त्र के वेत्ता (जानकार) थे । उन्होंने त्रिशला रानी के देखे हुए
स्वप्नों का फल जानकर बड़ी प्रसन्नता के साथ रानी से कहा कि तुम एक महान सौभाग्यशाली,
बलवान, तेजस्वी, महान ज्ञानी, महान गुणी, यशस्वी, जगत-उद्घारक, मुक्तिगामी पुत्र की माता
बनोगी । भ्राज वह तुम्हारे उदर में भ्रवतरित हुभ्रा है, इसकी शुभ सूचना देने के लिए ये स्वप्न तुम्हें
दिखाई दिए हैं ।
भ्रपने घर श्रत्यन्त सोभाग्यशाली जीव का श्रागमन जानकर राजा सिद्धाथ श्रौर श्रिशला
रानी को बहुत हर्ष हुमा । वे उस दिन की प्रतीक्षा करने लगे, जब उन्हें भ्रपने पुत्र देखने का
भ्रवसर मिलेगा ।
उस श्रवसर पर देवों ने श्राकर राजा सिद्धार्थ के घर बहुत उत्सव किया । उसी दिन से
५६ कुमारिका देवियां त्रिशला रानी की सेवा करने के लिए नियुक्त हुइं । उन देवियों ने त्रिशला रानी
की गर्भाधान के दिनों में बहुत भ्रच्छी सेवा की, उसे किसी भी तरह शारीरिक तथा मानसिक कष्ट
नहीं होने दिया । विविध प्रकार के मनो रू जन करके त्रिदला रानी का चित्त प्रसन्न रबखा, उसे किसी
तरह का खेद न होने दिया ।
जन्म-उत्सब
नौ मास, सात दिन व्यतीत होने पर चेत्र शुबला श्रयोदशी के दिवस श्रयंमा योग में त्रिशला
रानी ने भ्रनुपम तेजस्वी, सर्वा ग सुन्दर पुत्र का प्रसव किया, जिस तरह पूर्व दिशा सुय॑ का उदय करती
है। उस समय समस्त जगत में शान्ति की लहर बिजली की तरह फंल गई । सदा नारकीय यन्त्रणाधों
से दुखी जीवों को भी उस क्षण में शान्ति को सांस मिली । समस्त कुण्डलपुर में शभ्रानग्दभेरी बजने
लगी । सारा नगर हर्ष में निम्न हो गया । पुत्र जन्मोर्सव के उपलब्य में राजा सिद्धार्थ ने बहुत दान
किया शभ्रौर राज-उत्सव मनाया ।
सौधम का इन्द्रासन स्वयं कम्पित हो उठा तब इन्द्र को भ्रवधिज्ञान से ज्ञात हुमा कि
कुण्डलपुर में झन्तिम तीथखूर का जन्म हुआ है । तत्काल वह समस्त देव-परिवार को साथ लेकर बड़े
बन
समारोह से कुण्डलपुर भ्राया । वहां पर राजभवन में जाकर उसने बहुत मंगल-उत्सव किया ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...