तीर्थकर महावीर - भक्ति - गंगा | Tirthakar Mahavir - Bhakti - Ganga

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे त्रिदला रानी ने मीठी वार में प्रभात से कुछ समय पहले देखे हुए १६ स्वप्न सुनाए भ्ौर उनसे प्रकट होने वाला फल राजा सिद्धाथं से पूछा । राजा सिद्धार्थ निमित्त शास्त्र के वेत्ता (जानकार) थे । उन्होंने त्रिशला रानी के देखे हुए स्वप्नों का फल जानकर बड़ी प्रसन्नता के साथ रानी से कहा कि तुम एक महान सौभाग्यशाली, बलवान, तेजस्वी, महान ज्ञानी, महान गुणी, यशस्वी, जगत-उद्घारक, मुक्तिगामी पुत्र की माता बनोगी । भ्राज वह तुम्हारे उदर में भ्रवतरित हुभ्रा है, इसकी शुभ सूचना देने के लिए ये स्वप्न तुम्हें दिखाई दिए हैं । भ्रपने घर श्रत्यन्त सोभाग्यशाली जीव का श्रागमन जानकर राजा सिद्धाथ श्रौर श्रिशला रानी को बहुत हर्ष हुमा । वे उस दिन की प्रतीक्षा करने लगे, जब उन्हें भ्रपने पुत्र देखने का भ्रवसर मिलेगा । उस श्रवसर पर देवों ने श्राकर राजा सिद्धार्थ के घर बहुत उत्सव किया । उसी दिन से ५६ कुमारिका देवियां त्रिशला रानी की सेवा करने के लिए नियुक्त हुइं । उन देवियों ने त्रिशला रानी की गर्भाधान के दिनों में बहुत भ्रच्छी सेवा की, उसे किसी भी तरह शारीरिक तथा मानसिक कष्ट नहीं होने दिया । विविध प्रकार के मनो रू जन करके त्रिदला रानी का चित्त प्रसन्न रबखा, उसे किसी तरह का खेद न होने दिया । जन्म-उत्सब नौ मास, सात दिन व्यतीत होने पर चेत्र शुबला श्रयोदशी के दिवस श्रयंमा योग में त्रिशला रानी ने भ्रनुपम तेजस्वी, सर्वा ग सुन्दर पुत्र का प्रसव किया, जिस तरह पूर्व दिशा सुय॑ का उदय करती है। उस समय समस्त जगत में शान्ति की लहर बिजली की तरह फंल गई । सदा नारकीय यन्त्रणाधों से दुखी जीवों को भी उस क्षण में शान्ति को सांस मिली । समस्त कुण्डलपुर में शभ्रानग्दभेरी बजने लगी । सारा नगर हर्ष में निम्न हो गया । पुत्र जन्मोर्सव के उपलब्य में राजा सिद्धार्थ ने बहुत दान किया शभ्रौर राज-उत्सव मनाया । सौधम का इन्द्रासन स्वयं कम्पित हो उठा तब इन्द्र को भ्रवधिज्ञान से ज्ञात हुमा कि कुण्डलपुर में झन्तिम तीथखूर का जन्म हुआ है । तत्काल वह समस्त देव-परिवार को साथ लेकर बड़े बन समारोह से कुण्डलपुर भ्राया । वहां पर राजभवन में जाकर उसने बहुत मंगल-उत्सव किया ।




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