स्वामी चिदेयानंद- एक परिचय | swami Chideyanand - ek parichay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आपके अन्दर का ईदवरव्व आपके .बाहर की वस्तुओं से अधिक शक्तिशाली है, अतः किसी भी वस्तु से भय न कीजिये । अपनी अन्तरात्मा पर ही निर्भर रहिये । अन्तहं ष्ट द्वारा मुल से शक्ति पाइये। त्याग के बिना आप कदापि सुखी नहीं हो सकते । त्याग के बिना आप कभी विश्राम नहीं कर सकते । अतः सब कुछ त्याग डासिये । सुख पर अपना अधिकार जमाइये । त्याग को ही सर्वश्रेष्ठ सानिये । अपना सुधार कीजिये । चरित्र का निर्माण कीजिये । हुंदय को शुद्ध बनाइये । वृत्तियों को शान्त कीजिये । उफनते आवेगों को स्तब्ध कीजिये ! वहिमुख इच्द्रियों को समेट लीजिये । वासनाओं को नष्ट कीजिये । आप गम्भीर ध्यान में सहिमामय आत्मा के दर्शन करेंगे । पुर्ण स्वतन्त्रता तथा निर्वाण की प्राप्ति के पांच साधन हैं । इनसे ही परम सुख की प्राप्ति होती हैं । यह है सत्संग, विवेक, वैराग्य, मैं कौन हूँ ?' का विचार तथा ध्यान । ये ही स्वर्ग हैं, ये ही धर्म हैं, ये ही सर्वोच्च सुख हैं । पहले भला बनिये तब इन्द्रियों का दमन कीजिये, तब सिम्न सन को उच्च सन से पराजित कीजिये, तब ईश्वरीय ज्योति का अवततरण होगा । बिना जल्दबाजी किये शास्तिपुरवेक, संलग्नतायुवक ध्यान का अभ्यास कीजिये । आप शीघ्र ही समाधि प्राप्त कर लेंगे । आध्यात्मिक जीवन कठिन तथा श्रमयुक्त है । इसके लिए सतत सावधानी त्तथा उत्साह की आवश्यकता है । तभी ठोस उन्नति सम्भव है । आपने स्वयं ही अज्ञानवश बन्दीगृहू की दीवारें अपने लिए खड़ी की हूँ। आप विवेक तथा 'में कौन हूँ ?” के विचार द्वारा इन दीवार को ध्वस्त कर सकते हैं । कष्ट आदमी को शुद्ध बनाते हैं । वे पाप तथा मल को जला डालते हैं । ईश्वरतव अधिकाधिक प्रकट होते लगता है । उससे आन्तरिक शक्ति




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