प्रबंध - पद्म | Parbandh Padm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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No Information available about श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शून्य '्यर शक्ति
शांति में लीन । ऐसा ही हुआ है; ऐसा ही होगा,। फिर किसी
ध्गले युग सें पुनः-पुनः उसी शून्य-समाप्ति से छाविष्कार
होते रदेंगे--मरकंपित सन की झलग-अझलय सूरतें जड़ यंत्रों में .
परिणत होती रहेंगी । वहाँ के विज्ञानाचार्यों का जो यह प्रश्न
है कि शक्ति का नियामक कौन है; जिसका वाहर ही वे उत्तर
निकाल लेना चाहते हैं, श्याप द्रप्टा की तरह बिलकुल 'झलग
रदकर--इसके लिये हम कहेंगे, जिस तरह यंत्र का ्याविष्कार
वाहर से पदले भीतर होता है: उसी तरह यह नियामक भी
भीतर ही प्राप्त होगा । जिस 'दहम' ने यह सब घाविष्कार
किया, शक्ति का नियासक भी वही है। पाँच सौ 'वत्तियों की
रोशनी और हज़ार वत्तियों की रोशनी ाप नहीं पेदा हुई,
यह शक्ति का भेद उसी 'हम' का किया हुआ है, जिसने
ये वत्तियाँ वनाई', योर जिनसे शक्तियों में घटाब-बढ़ाव होता
हे--वाद्य रूप से, वे उस शक्ति-मेदू के उपकरण हैं। यंत्रों से
और जो कूछ भी निकलता हो, यंत्रकार का 'हम' नहीं
निकल सकता । यंत्रकार के जिस 'हम' में तेयार करने की
शक्ति है, उसके उसी 'हम' की भीतिक शक्ति यंत्र-शक्ति में काम
कर रही है, क्योंकि “हम' के पंचतत्वों से अलग कोई छठा
तत्व यंत्र में नहीं लगा। इस 'हम' का आाविष्कार व्यौर
वेज्ञानिक प्रगत्तियों को नाड़ी बंद एक वात है । 'हम' मरे हुए
मन में शूल्य के सिवा कुछ नहीं; तब विज्ञान का 'छाधघार भी
शुन्य दी इ्या |
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