छायावाद | Chayawad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका छ
समभा जाता था । इसी से करपियों की दृष्टि श्ाचारवादी १्प्सीं सदी
के क्रासिकल काव्य श्रीर मराठी कविता 'तक सीमित रही ।
परन्तु १९वीं शताब्दी के श्रंत दोते-द्ोते देश वेँगला-काव्य से
परिचित दो रददा था । माइकेज्, विदारीलाल, टेमचंद्र श्रीर रवीन्द्र
दिंदी प्रदेश में भी पहुँचे । इनमें रवीन्द्र की कविता पर श्रंग्रेजी रच-
च्छंदतावाद, उपनिपदों के रदस्यवाद, बं गलां मावुकता श्रीर वैप्णय
भक्ति का प्रभाव था । १६१६३ के आसपास उनके क्राव्य के शनुकरण
से ये प्रमाव भी दिंदी में आरा गये | परन्ठु रवीन्द्रनाथ ने श्रकेले छाया-
वादी काव्य को जन्म दिया, यह कदना शत्युक्ति द्वोगी । १६०० के वाद.
से ही 'सरत्वती' में कीट्स, शेजी; वर्डसवर्थ, ब्लेफ श्रादि रोमांटिक
कवियों के श्रनुवाद प्रकाशित होने लगे थे । इन श्रनुवादों ने श्रनुवाद-
कर्त्ताश्रों शरीर लेखकों को प्रभावित किया । दूसरे, श्रंप्रेज़ी की उद्य
* कन्नाश्रों में रोमांटिक काव्य पढ़ाया जाने लगा था श्रीर नये हिन्दी के
कि इससे श्रपरिचिंत नहीं रद सके । पंत द्वारा झ्रंग्रेजी रोमांटिक
काव्य का प्रमाव मुख्य रूप से दिन्दी में श्राया । 'पंत” श्रीर “निराला”
दोनों रवीन्द्र के क्राव्य से प्रभावित हूं । पंत” के “पह्न व” . श्रीर निराला
की क्रितनी दी कब्रिताश्रों में रोन्द्र के स्वर बोल रहे हैं । निराला ने
विवेकानन्द के द्रद्वैत भक्ति के काव्य से स्कूर्ति ली । प्रसाद ने रवीन्द्र
की गीताझलि के प्रभाव को ग्रहण क्रिया । “भरना? की कविताएँ
: इसका उदादरण हैं । परन्ठ उन्दोंने इस-प्रमाव को शीघ्र दी छोड़ दिया ।
उदू काव्य की व्यंजना-रीली श्रीर मावुकता एवं संस्कृत सुक्तकों एवं
श्ाचार्यो' की स्थापना से इंगित लेकर उन्होंने श्रपने लिये एक विशिष्ट
काव्य-शेली- का निर्माण किया )
केवल एक दशक के भीतर (१६१०-२०) हिन्दी काव्य में
'मददान् क्रांति हो गई । जिन लोगों ने इसका सूत्पात किया वे बंगला या
खंग्रज़ी काव्य के पंडित थे | जितनी शीघ्रता से यदद क्रांति हुई उसका
उदाइरण इस देश की कविता के इतिहास में मिलना श्संभव है ।
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