अंतहीन - अंत | Antaheen - Ant

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : अंतहीन - अंत  - Antaheen - Ant

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about उदयशंकर भट्ट - Udayshankar Bhatt

Add Infomation AboutUdayshankar Bhatt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दृश्य 3 प्रारंभ [ ११ देवेन्द्--जमुना, तुम्दारा यह रूप शोभन है, सार्मिक भी ! से चाहता हूँ हम में इसके चिरु& चिद्रोद की भावना होती ! त रूप०--अमुना देवी इस समय ऐसे देख पढ़ती हैं' मार्नों नाटक में किसी देवी का पार कर रही हों ! जमुना--तुमने स्त्रियों को दवा रखा है चाहते हो जैसा चलाते हो, उनके घार्णाकी भी तुमने स्वाथेक्रे वश होकर हत्या कर दी है। पुरुप चाहे जितना पाप करे समाज उसे कुछु भी न कददेगा परंतु पैर फिसलते ही इस स्त्री का सर्वस्व नए हो गया, ऐसी तुम डॉंडी पीठते हो, कया यही तुम्हारा न्याय है, धर्म है ? रूप०-( देवेंद्र से ) सचमुच तुमने आज मेरो औखें खोल दीं । मैं चल फिर ! देंवेन्द्र-इसमें क्या संदेह हैं। हैं तो क्या निश्चय रहा जमुना ? जमुना-मैं पा करूँगी | रूप०--( प्रसन्न होकर ) तुमने हमारी लजा रख ली जमुना ! देवेन्द्र-देखो जमुना, दम लोगों का उद्देश्य मनुष्य की आत्सा को नाटकके द्वारा उठाना है, उसके छृद्यको ककशोर देना है । हम किसी तरह भी चीची सतह पर उतर कर मनुष्यता को रिंराना नहीं चाहते । जिस दिन मेरे साहित्य से ऐसा होने की सुते गंध भी आवेगी, उसी दिन मैं लिखना छोड़ टूँगा। जसुना--( मुस्करा कर ) देवेन्द्र खुंदर कया मैं तुम्हें जत्नती नहीं हूँ । रूप०-मुखे तो ऐसा देख पड़ता है अ।जकल जो नर्गर में चोरियी डाके पड़ रहे हैं कुछ अंशों में ठीक बैसा दी हमारे नाटक . का पात्र सूयकुमार है। थ जमुना--ठीक है, ( सोच कर ) न जाने कौल भयंकर पुरुष है जिसने इस्या, मारकाट, चोरी लूट का चाजार गरस कर रखा है । अभी कल ही हमारे पड़ौसी के छुः हज़ार रुपये बैंक से लौटते ' हुए किसी ने छीन लिये । पुलिस को कुछ भी पता नहीं लगा । अभी उस दिन सुना कि किसी ने शरीवों के घर जाकर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now