आँगन के पार द्वार | Aangan Ke Par Dwar

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Aangan Ke Par Dwar by अज्ञेय - Agyey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पास अर दूर जो पास रहे वे ही तो सब से दूर रहे : प्यार से बार-बार जिन सबने उठ-उठ हाथ और झुक-झुक कर पैर गहे, वे हो दयाछु, वत्सढ, रनेही तो सब से कर रहे | जो चढे गये ठुकरा कर हृड्डी-पसली तोड़ गये | पर जो मिट्टी उनके पग रोष-भरे खूँदते रहे, फिर अवह्देढा से रॉंद गये, उस को वे ही अनजाने में नयी खाद दे गोड़ गये : उस में वे ही एक अनोखा अंकुर रौंप गये | -एजो चढे गये, जो छोड़ गये, जो जड़ें काट, मिट्टी उपाट, चुन-चुन कर डा मरोड़ गये वे नहर खोद कर अनायास सागर से सागर जोड़ गये । मिटा गये अस्तित्व, किन्तु वे जीवन मुझ को सौंप गये । चड्िहि किन के पार हार व्‌ ये दर लि ह “कत्ल ध्व,




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