मृच्छकटिक भाषा | Mrichchhakatik Bhasha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० _ सुच्छकटिकभाषा
संध्या--गदना बाजति जब तू भागति ।
राप के डर दुपदी ध्यस लागति ॥ .
दरव. तुप्हि.. जैसे. हनुमान ।
घरी सुभद्रा ध्ब ते जान ॥
ठउदददुझा--श्ाउ. राजलारे के. पास ।
तब तू. खेंदे मक्ठरी मांस ॥
:... जय पावत हैं. . मरी मांख ।
तब नदि. कूकुर छुव्ें लहास ॥
विद--बसंतसेनावाई
हा कडितर सुन्दर किंकिनि छाजत |
| तारागन सम लसत बिराजत ॥
ग मुखर सेंदुर्रंग लजावति |
डर बस पुरदेवी सम धावति ॥
............ संस्था-वध्ारबराप के भागति. नारि।
पर कूझुर से. जैसे. .सोयारि॥
पे ४. '.. ज्ञदद़ी ज्ञद्दी दोरति. ज्ञाय ]
सारा चित ते लिये. चाराय ॥
बसंतसेना-पल्लचिका | पुविका ! परभविका ! परम तिका
संस्था--भाई, काई घोर भी है ?
चिट--डरो न, डरा न,
बसंत--माघविका ! माघविका !
विट --धजी, वह तो श्वपनी लौंडियों के पुकार रही है ।
सस्था--भाई, छगाई ढंढ़ती है ।
बिट--हाँ, हाँ।
संस्था-ख़॒गाई तो हम सो मार सकते हैं--हम बड़े सूर हैं ।
बसन्त--( सूना देख कर ) हाय, दाय, क्या सब पौछे रह
गई | दाय, ता भ्केली हो हूँ !
विट--ढंढ़ो, ढँढ़ी ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...