मृच्छकटिक भाषा | Mrichchhakatik Bhasha

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Mrichchhakatik Bhasha by लाला सीताराम - Lala Sitaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० _ सुच्छकटिकभाषा संध्या--गदना बाजति जब तू भागति । राप के डर दुपदी ध्यस लागति ॥ . दरव. तुप्हि.. जैसे. हनुमान । घरी सुभद्रा ध्ब ते जान ॥ ठउदददुझा--श्ाउ. राजलारे के. पास । तब तू. खेंदे मक्ठरी मांस ॥ :... जय पावत हैं. . मरी मांख । तब नदि. कूकुर छुव्ें लहास ॥ विद--बसंतसेनावाई हा कडितर सुन्दर किंकिनि छाजत | | तारागन सम लसत बिराजत ॥ ग मुखर सेंदुर्रंग लजावति | डर बस पुरदेवी सम धावति ॥ ............ संस्था-वध्ारबराप के भागति. नारि। पर कूझुर से. जैसे. .सोयारि॥ पे ४. '.. ज्ञदद़ी ज्ञद्दी दोरति. ज्ञाय ] सारा चित ते लिये. चाराय ॥ बसंतसेना-पल्लचिका | पुविका ! परभविका ! परम तिका संस्था--भाई, काई घोर भी है ? चिट--डरो न, डरा न, बसंत--माघविका ! माघविका ! विट --धजी, वह तो श्वपनी लौंडियों के पुकार रही है । सस्था--भाई, छगाई ढंढ़ती है । बिट--हाँ, हाँ। संस्था-ख़॒गाई तो हम सो मार सकते हैं--हम बड़े सूर हैं । बसन्त--( सूना देख कर ) हाय, दाय, क्या सब पौछे रह गई | दाय, ता भ्केली हो हूँ ! विट--ढंढ़ो, ढँढ़ी ।




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