तुलसी के भक्त्यात्मक गीत | Tulasi Ke Bhaktyatmak Geet

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका श्छ सम्बन्धित है । इसके चार श्रध्याय है । सामाजिक, राजनेतिक विचार, घामिक विचार तथा श्राव्यात्मिक विचार । इस प्रबन्ध में तुलसीदास पर किए गए कार्यों का ही एक प्रकार से पुषमूल्याकन हुआ है । १२--उपयुंक्त वर्ष के आसपास ही “रामभवित शासा” पर श्री रामनिरजन पाण्डेय को पी-एच० डी० की उपाधि मिली । यह पुस्तक नवहित्द पब्लिकेशन हैदराबाद से छप भी गई है । एकाघ शोघ ऐसा भी हुमा है जो तुलसीदास से मुस्यतया सम्बन्धित न होकर उनसे ईपत्‌ सम्बन्धित हैं । “जैसे, रामानद सम्प्रदाय तथा हिन्दी साहित्य पर उसका प्रभाव '--वदरी नारायण श्रीवास्तव (१९४५५) तया “'दृतिवासी बगला रामायण श्रौर रामचरितमानस का तुलनात्मक श्रव्ययन”--रामनाय विपाठी प्रेरणा अ्रत पुन थह कहता श्रावश्यक नहीं होगा कि तुलसी के भव्त्या मक गीत शोध-प्रज्ञो की दृष्टि से परिचित ही रहे हैं। १९६५१ ई० में ईर्वर की पूव निश्चित योजना तथा. तुलसी साहित्य के प्रति श्रास्यावान परिवार एवं परिवेश के समुज्ज्वल सस्कार ने मुझे विज्ञान के मरुस्यल से दूर हटाकर साहित्य की पुष्प-वाटिका मे ला खडा किया । जब रुनातकोत्तर कक्षा में प्रविष्ट हु तो विशेषाध्ययन पत्र मे तुलसी साहित्य का मैंने श्रास्वादन किया । एम० ए० कर जाने पर भी जब तुलसी साहित्य के श्रब्ययन की भ्रतृप्ति वार-वार मन को कुरेदतो रही, तो पुन तुलसी के श्रस्पृष्ट नीतिकाव्यों पर ही मैंने शोघकाय प्रारम्भ किया । दोध-प्रबन्ध को रूपरेखा एवं मोलिकता तुलसी के भवत्यात्मक गीत--विशेषत विनयपर्त्रिका नामक मेरे इस प्रबन्ध के दो खड हैं 1 पहने खड के दो भ्रष्यायो में परम्परा भौर पृष्ठभूमि पर विचार किया गया है । प्रथम श्रथ्याय में भत्रित के विकास की सक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तत कर यह दिखलाने का प्रयास किया गया है कि जो भक्ति ऋग्वेद से नि सूत हुई, वही श्रपने पूर्ण विकसित रूप में तुलसी के गीतकाव्य में प्रवाहित हुई है ! द्वितीय अध्याय में भवंत्यात्मक गीतों का विकास दिखलाकर उसमे तुलसी के भक्त्यात्मक मीतो-- विशेषत' वितयपत्रिका से प्रत्यक्ष सम्बन्ध दिखलाया गया है । भक्ति श्रौर भफ्त्यात्सक गीतों पर इतस्तत कुछ निबन्ध या छिटफुट निर्देश भले मिल जाये, क्न्तु इस प्रवार का श्रमवद्ध विवेचन लेखक का श्रपना मौलिक प्रयास है । द्वितीय खड़ तुलसीदास की गीतकृतियो --गीतावली, श्रीइप्णुगीतावली तथा विनयपत्रिका से सम्दघित है । इस खड मे छह अध्याय हैं 1 प्रथम भ्रष्याय में गीत कृतियों का विषय श्रौर रूप वी दृष्टि से विवेचन प्रस्तुत क्या गया है । मकपात्मक गीतों के भी कई प्रकार होते हैं श्रौर उन सब प्रकार के गीतों की एक समृद्ध परम्परा है। निन्तु जहाँ तक दिशुद्ध झात्मनिवेदनात्मक




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