श्री सनातन धर्मालोक | Shri Sanatan Dharmalok

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[न]. जाभार्थ नितरासू श्रावश्यक है। शव 'ध्प्रिम पुप्पके लिए संरक्षक, सहायक, प्रेरक एवं प्रचारकोंकी श्रावश्यकता दे । मिंतनी शीघ्र सद्दायता पप्त होगी, उतना ही शीघ्र अन्थमालाका प्रकाशन दोगा। अरक, महोदय ध्यान दें । कि पी अमूल्य कोई भी न ले हें इस प्न्यमालामें जो भी साहाय्य या मूस्य माप्त होता दै; वद सब धागेके पुष्पोकि प्रकाशनार्थ जमा कर लिया जाता है; उसे 'पने कार्म्म नहीं लगाया जाता; श्रतः कोड भी महीदय इन यरन्योंको पिन मूल्य न लें । यदि श्रधिक-सहायता कोई मददोदय न कर संक; तो यस्थक्रा सूख्य श्ववश्य दें, 'ग्रौर इन ग्न्योंके प्रचारमें '्वर्य सहायक व्नें। संरत्कका एफ-हज्ञार रुपया नियत है, श्ौर सहायकोंका न्यूनसे न्यून १००) रुपया है, यह सदको स्मरण रखना चाहिये । संररक- महोदयंका चित्र भी प्रकाशित होगा श्ौर सब प्रकाशरनों पर नाम भी । स्थायी आहकोंके लिए यदद सुबिधा रखी गई दै कि--वे २) जमा करा दे, फिर उन्हें सभी पुष्प पौने मूह्म पर दिये जावेंगे। दन्दें सव श्रकाशिते पुष्प लेने पड़ेंगे ! इस पुप्पमें जिन मद्दाशयोंकि सनातनधरमं-विरुदद॒ मठकी श्रालोधित किया हैं, उसमें कोई ईपर्या-देप कारण नहीं, किन्तु शाखका बास्तथिक अभिप्राय-प्रदर्शन ही वहाँ मुख्य- लक्ष्य है। फिर भी यदि किसी मही- बयका सनः-चोम हुधा हो, वो वे हमारे हृदयको जानते हुए हसें धमा करेंगे । चिचारमे जो शुडि रह गई हो, दिद्दानु हमें उसकी सूचना इन शब्दोकि साथ यदद भूमिका समाप्त दै । श्रीब्यासपूर्णिमा निधेदक:-- _ इस्वार है. दग्रानायर्था सात्वी लारतात विवावगकित, सर (0 रामदल, द्रीवाकलां, देहली च




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