जैनदर्शन स्वरूप और विश्लेषण | Jaindarshan Svarup Aur Vishlishan

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Jaindarshan Svarup Aur Vishlishan  by देवेन्द्र मुनि शास्त्री - Devendra Muni Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुण्य और पाप तत्त्व एक परिचय श६१-१६५ पुष्य और पाप तत्त्व- १६०, पुण्य और पाप तत्त्व में भेद- १६०, पुष्य के दो घ्रकार- १ ६४, पाप के दो प्रकार- १९६४५ | आस तत्व एक घविवेचन श६६-२०१ आश्चव के पाँच प्रकार- १९७, आधव के दो भेद- ०००, बट साहित्य में आसख्रद- २०० 1 सवर एद निर्जेरातत्व एक मीमासा २००-२२० सबर तत्त्व एक अनुहप्टि- २०३, सवर के प्रकार- २०८४, यौद्धदर्णन में सचर- २०६, निजरा तत्व- २०६, निर्जरा तचव के भेद- ०१०, अनदान- २११, ऊनोदरी- २१२, भिक्षाचरी- २१३, रस परित्याग- २१३, कायवलेश २१४, प्रतिसलीनता- २१४, घ्रायष्चित- ०१४, विनय- ०२१६, चैयाधृत्य- २१७, स्वाध्याय- २१७, घ्यान- ०१८, कायोत्सर्ग- २१६ । हे चबन्ध और भोक्ष तत्व एक बिद्लेपण २९१-२२८ वन्ध तत्त्व- ०००, धन्ध के प्रकार- ०००, मोक्ष: २०४, चयौइ हप्टि मे- २९२४, ज्ञानादि गुणों का सबथा उन्छेद नहीं- ०२६, निर्वाण- ००७, मोक्ष का सुख- ००२८ । तृतीय खण्ड प्रमाण चर्चा २२६-४०६ जैनदवोन का आधार स्याद्वाद 9२६-९५० स्पाद्वाद कया है * -२३१, समन्वय का श्रेप्ठ मार्ग -२३०, अन्य दशनों पर अनेकान्त की छाप -२३३, नित्यामित्यता -२३७, आत्मा का शरीर से भेदाभेद -र४०, सत्ता और असत्ता -२४१, सप्तमगी “२४३, भ्रम निवारण “२४३, स्पाद्वाद सदययवाद नहीं -२४६, विरोध का निराकरण «२४७, नयवाद- २४८ 1 सप्तभगी स्वरूप और ददन 'र४१-२७८ सप्तमगी -२५२, सप्तभगी और अनेकान्त -र४५४, स्यादवाद के मगो का आगम कालीन रूप -र५४, भग कथन-पद्धति -२६२, प्रथम भंग -२६२, द्वितीय मग -२६४, तुतीय भग -२६४, चतुर्थ भग -०६४, पाँचवाँ भग -२६५, छूट्टा भंग -२६५, सातवाँ मग -२६५, चतुष्टय की परिभाषा -०६६, स्यात्‌ शब्द का प्रयोग -२६६, अन्य दशेनो मे -२६७, प्रमाण सप्तभभी उर६८, नय सप्तभगी -२७०, काल आदि की हृष्टि से -२७१, व्याप्य-व्यापक भाव -र७३, अनन्त मगी नहीं -२७३, सप्तमगी का इतिहास -२७४ ।




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