आधुनिक संस्कृत नाटक भाग - 2 | Adhunik Sanskrit Natak Bhag - 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Adhunik Sanskrit Natak Bhag - 2 by रामजी उपाध्याय - Ramji Upadhyay

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामजी उपाध्याय - Ramji Upadhyay

Add Infomation AboutRamji Upadhyay

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अध्याय ७93 शबचूडवघ दाखचूड वघ कं प्रणेता दीनद्विज का प्रादुर्माव बासाम मे उतीसवी दाती के प्रथम चरण में हुया। दोनद्विंज न इखचूडवघ की. रचना १७०९५ दाक-सवततु तदनुसार (८०३ ई० मे वी । कवि सन्दिक वशीय राजा वरफूवन के दारा सम्मानित था 1* नारायण के द्वारा आदिप्ट सुत्रपार न इसका प्रयोग विया था । विष्णु की तीन पत्नियो--गगा, सरस्वती और लस्मी का कलह हुआ । उनके परस्पर-द्ाप से गगा और सरस्वती को नदी रुप में मर्व्यंलोक म आना पडा और लग्मी को तुल्सी- पोघा बनना पहय 1* पहले लक्ष्मी वेदवती बनी ! तपस्या करती हुई प्रेमी रावण के घपण से भीत वह अग्नि में जल मरी । बृपमध्वज शियमक्त था १ शिवाराधनात्मव तप करते समय तीन युग तक शिव उसके आश्रम ने रह 1* एक वार सुय शिव से मिलने के रिए उस माश्रम में आये 1 सूर्य वपमध्वज पर विगे, क्योवि उसने सत्वार नहीं क्या 1 सूय ने उसे सोटी खरी सुनाई तो शिव न क्रोघ करके श्रिशूल से सुय को मार ढालना चाहा । तब तो आत्म रक्षा के लिए सूय अपने पिता काइयप को ल्कर ब्रह्मा की शरण में पहुंचे । असमय ब्रह्मा मी उनके साथ विष्णु के पास पहुंचे । विष्णु ने कहा--मेरी शरण में तुम निमय रहो । शिव वहाँ सूय की दण्ड देने आये तो विष्णु की स्तुति करने लगे । विष्णु के पूछने पर शिव ने कहा कि मेरे आराघक की शाप देने वाले सुप को बस छोड देता हूँ। बयोकि वह आप की दारण में है। अब मेरे मक्त वृपमध्वम वा कया होगा ? विष्णु ने कहा कि इस बैकुण्ठ के आधे दण्ड में प्रयिवी वे ?० युग वीत गये । भव तो दुपमध्वज के कुल में धमध्वज गौर दुगध्वज हैं । १. शाके तत्त्वमूनीन्डुभिवियणितैमापाविरमिशधसु दा । वावय सस्कृतकेरिम रचितवान्‌ भूदेववर्याग्रणी 1 ३ ४१ २ नान्दी में कहा गया है-ण साधक वरारजन्मा जयति विमलघी श्रीवृत्फुक्व नोज्सी 1 शाप में सरस्वती न कहा कि तुम्हारे स्नान स॒ पापी पाप विसजन करेंगे । वह तुम्हीं में मिलेगा । तुम पापयुक्ता बनोगी ! हरि न शाप का परिमाउन किया यथा, सरस्वती एक कला से मारत की नदी हुई, दूसरी का से सावित्री नामक ब्रह्मा वी पली हुई और तीसरी कला से हरि की सल्निधि में रही । गा एकता से शिवं की जटा में गई, दूसरे अश से हरि की सपिधि में और तीसरे से गंगा नदी घनी 1 ४. घियुगमवात्सीत्‌ 1 दे दस




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now