साहित्य देवता | Sahity Devata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about माखनलाल चतुर्वेद्दी - Makhanlal Chaturvedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वैद्य कहते हैं घमनियों के रक्त की दौड़ का आधार हृदय है--क्या
हृदय तुम्हारे सिवा किसी और का नाम है ?
व्यास का कृष्ण और वाल्मीकि का राम किसके पंखों पर चढ़कर
हज़ारों वर्षो की छाती छेदते हुए आज भी लोगों के हृदयों में विराज रहे हैं ?
वे चाहे काऱाज़ के बने हों, चाहे भोज-पत्रों के, वे पंख तो तुम्हारे ही थे ।
रूठो नही, स्याही के श्वंगार; मेरी इस स्मृति पर तो पत्थर ही पड़
गये कि--
ये तुम्हारा चित्र खींच रहा था ।
को के _.. ऋ मे
परन्तु तुम सीधे कहाँ बेठते हो ? तुम्झरा चित्र ? बड़ी टेढी खीर है !
सिपहसालार, तुम देवत्व को मानवत्व की चुनौती हो । हृदय से छन कर,
घमनियों मैं दौड़नेवाले रक्त की दौड़ हो और हो उन्माद के अतिरेक के रक्त-
तपणु भी ।
आह, कौन नहीं जानता कि तुम कितनों ही की बंसी की घुन हो;
घुन वह, जो गोकुल से उठकर विश्व पर अपनी मोहिनी का सेतु बनाये हुए
है। काल की पीठ पर बना हुआ वह पुल मिटाये मिटता नही, भुलाये
भूलता नहीं ।
ऋषियों का राग, पैगाम्बरों का पैग़ाम, अवतारों की आन युगों को चीरती
किस लालटेन के सहारे हमारे पास तक आ पहुँची ? वह ता तुम हो । और
आज भी कहाँ ठहर रहे हो ? सूरज और चाँद को अपने रथ के पहिये बना,
सूभ के घोड़ों पर बैठे, बढ़े ही तो चले जा रहे हो प्यारे ! उस समय हमारे
पु
User Reviews
No Reviews | Add Yours...