हिम - तरंगिनी | Him - Tarangini

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Him - Tarangini by माखनलाल चतुर्वेद्दी - Makhanlal Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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; ३ ; खोने को पाने शये रहो? रूठा यौवन-पथिक, दूर तक उसे मनाने आये दो? खोने को पाने श्राये हो? आशा ने जन झंगड़ाई ली, विश्वास सिगोढ़ा जाग उठा; मानो पा, प्रात, पपीहे का- जोडा प्रिय बन्धन त्याग उठा, मानों यमुना के दोनों तट ते लेकर लहर की बाहे- मिलते मे श्रसफल कल-कल मे- रोये ले मधुर मलय थाह, क्या सिलन-मुग्ध को, बिछुड़न की, वाणी समभकाने आये हो ? खोने को पाने श्राये हो? जव वीणा फी खरी खीची, येयस कराह भकार उठी, मानो कल्याणो वाणी, उठ- गिर पढ़ने को लाचार उठी, तारों मे तारे डाल - डाल मनमानी जच सिजराब हुई, बन्धन की सूली के भूलो- की जब थिरकन बेतात्र हुई, हिम-तरंगिनी 3 | [ पोच




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