गुरुकुल पत्रिका वर्ष 48, 1997 | Gurukul Patrikaa Varshh-48, 1997

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(पड़ना), दीख़ना, नजर आना तथा अन्य इस प्रकार की क्रियाओं और अनुभव (महसूस) करना (होना) जैसे क्रियादंधो के योग से बनता है : मेरी जिम्मेदारी खत्म नहीं होती लगती है (पहाड़ी), बांके आया लगता है (रांगेय राघव), लाला साहब प्रक्के कृषक होते दिखाई देते हैं (प्रेमचंद), सरनो अपने शरीर से गरमी सी निकलती अनुभव हो रही थी (बलवंत सिह), सूर्य उदय हुआ मालूम होता था (प्रेमचंद) । इस जटिल विधेय से दिखने में समरुप रचनाओं को भिन्न करना आवश्यक है जिनमें दिखाई देना, नजर आना क्रियाएं, देखने में आना के अर्थ में प्रयुक्त होती हैं : उदाहरणार्थ, नन्दालाल की मां बाहर से आती दिखाई दी जैसे वाक्यों में सरल या सयुक्त विधेय ही आता है जो कृदंत से विस्तृत है। यह कृदंत विधेय से अलग प्रयुक्त हो सकता है . बाहर से आती नन्दालाल की मां दिखाई दी। जटिल विधेय का कृदंत अंग अलग नहीं आ सकता। यही नहीं, जटिल विधेय के आधार पर दो वाक्य बन सकते हैं : लगता है (कि) बांके आया। इस प्रकार का जटिल विधेय अपूर्ण क्रियाविशेषणात्मक कृदंत और डरना; झेंपना, श्मनिए धकना तथा कुछ और भावात्मक व्यापार व्यक्त करने वाली क्रियाओं के योग से भी बनता है. सदन उसके सामने उसके सामने पुस्तक खोलते डरता है (्रिमचंद), वह ऐसी छोटी भेंट देते हुए झेपता था (प्रेमचंद), मैं यह रटते-रटते धक गया। ऐसी ही जटिल विधेय उपरोक्त कृदंत और बचना क्रिया के योग से बनता है जिसमें बचना क्रिया सूचित करती है कि व्यापार सम्पन्न होते होते समाप्त न हो पाया . मैं गिरते गिरते बचा। कृदंती-कृदंती जटिल विधेय में दे द्विक्रियावाची रचनाएं आती हैं जो अपूर्ण कृदंत, पूर्ण क्रियाविशेषणात्मक कृदंत एवं पूर्वकालिक कृदंत और समापक क्रियारुपों के योग से बनती हैं । यह रहना क्रिया अपना वस्तुपरक अर्थ सुरक्षित रखते हुए पक्षवाचक और रंजक अर्थ भी व्यक्त करती है . मैं कॉपता रह गया, किरण देखती रह गयी प्रिमचंद), शंकरदत्त सहमकर रह गया (शानी), मैं यह जाने बिना न रहूंगा। यहां अपूर्ण कृदंत की जगह पूर्ण कृदत आ सकता है. उसकी आंखे फटी रह गयी। आसाहे में वाक्यगत संरचना की विशेषता यह है कि यहां तथाकथित अंशत: कर्ता और अंशत, विधेय का प्रयोग होता है जो वाक्य में मिलता है जहां मुख्य कर्त्ता (उद्देश्य) के अतिरिक्त सहायर्क क्र्त्ता या उद्देश्य आते हैं। अंशत: कर्त्ता निम्न रुपों में प्रमुक्त हो सकता है : १)... परसर्गहीन प्रत्यक्ष रुप में जो वाक्य के क्तावाचक उद्देश्य के रुप के समान हो सकता है . हमने हिन्दी के रिकार्ड बजते सुने (यशपाल जैन), थोड़ी देर हुई लौटा हूं (प्रेमचंद), आज मुझे तेरा सुर बदला लगा हुआ लगता है (रंगिय राघव), .असेस्बली खुलते ही यह बिल पेश करूंगा (प्रिमचंद), लाश उठाते उठाते रात हो जाएगी (राजेंद्र यादव)। जैसे कि उदाहरणों से विदित है, अंशतः किधेय अंशत: कर्त्ता के साथ या तो नियमानुसार समन्वित हो सकता है या अविकारी क्रियाविशेषणात्मक कृदंत के रुप में आ सकता है। (1)




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