हिन्दुस्तानी हिन्दुस्तानी एकेडेमी की तिमाही पत्रिका | Hindustani Hindustani Ekedemy Ki Timahee Patrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्् हिंदुस्तानी है, (चित्र २६), यद्यपि यह मूर्ति पंडित राधाकृप्ण जी द्वारा कहीं विदेश में शेज दी गई थी। इस में सवप्रथम दो पद दोनों हाथो में लिए हुए सूर्य पारसीक कोट पहुने खड़े है । उन के बाद छः सू तियाँ जटाजूट बाँधे क्रमदा: चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, झुक्र, और शनि की हूं। आठवीं मूर्ति तपंण-मुद्दा मे राहु की है। संभवत: इसी में पुन्छाकृति केतु की मूर्ति भी जुड़ी हुई थी । नवग्रहों से चित्रित यह शिलापट्ट मथुरा की गुप्तकालीन कला का अत्यत उत्कृष्ट उदाहरण है। विदित होता हूं कि नवग्रहों की स्वतंत्र सूर्तियाँ भी बनती थी । गुप्तो्तर कालीन राहु की' एक अच्छी मूर्नि शांतनुकुंड के मंदिर सें है। दो पारईवचरों के बीच में तपंणमुद्रा में मुस्कराते हुए राहु दिखाए गए हैं (चित्र २७) । ये दोनों मूत्तियां अप्रकाशित हैं। कामदेव योगी शिव और ध्यानी बुद्ध की मूरतियों के साथ ही कलाविदों ने कामदेव की भूतियों का भी सिर्माण किया । मथुरा में कुषाण-काल की कई मुर्तियों में भगवान्‌ कुसुमायुध का चित्रण पाया गया हू। अपना इक्ुकोदंड और पंचबाण लिए हुए वसत की पुप्पश्नी के मध्य में विराजमान कामदेव की एक सुंदर मिट्टी की मूर्ति मिली हूं (चित्र २८) | कामदेव को 'ब्रह्मवेवर्तपुराण' में योपिद्वाहन आर 'दाइवद्यूनिकृताधार' (कुष्ण-जन्मखड़, अ०् ३१) कहा गया हैं। अर्थात्‌ युबतिजन और युवा पुरुष, ये ही काम के वाहन है । प्रस्तुत मूर्ति में कामदेव युवा पुरुप के ऊपर खड़े हुए दिखाए गए हैं। देवी-सुतियाँ देवताओं के साथ देवियों की मूर्तियों की कल्पना भी भक्तिघर्म का लक्षण है । मथुरा कला में प्रधान-प्रधान देवियों की मूतियों का भी आदिम रूप पाया जाता हूं। यहाँ हम केवरू छ' मूर्तियों का वर्णन करेंगे । चित्र सं० २९ में कुषाणकाछीन शिलापट्ट है, जिस पर सात स्त्रियाँ मालाएँ लिए हुए खड़ी हूं, और दाहिनी ओर एक पुरुष हैं। ये सात स्त्रियाँ सप्तमाघुकाएँ हूँ, जो बहुत सादा वेंष में एक-सी दिखाई गई हैं। इन के दोनों ओर दो आयुध-पुरुप थे जिन में से अब केवल एक शेष है । कला की दृष्टि से यह मूर्ति श्रेष्ठ नहीं है, पर सप्तमातृकाओं की यह निस्संदेह सब से पहली कल्पना को प्रगट करती है।




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