रसनिधि | Rasnidhi

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Rasnidhi by डॉ भोलाशंकर व्यास - Dr. Bholashankar Vyasत्रिभुवन सिंह - Tribhuvan Singh

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त्रिभुवन सिंह - Tribhuvan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न सनमसपमिनमयमथसमटलससररमममनटमटदासमनवदमावनिसमयनपरननास्यनययरतएपपसमम्यवयनमर ज्वाला इस काव्य के सनोरम आकर्षण हैं । वियोग-वर्णन में जायसी ने निश्चय ही बड़ी कोभी सरसता की एहुरों में आह्वांदित कर दिया । वल्लभाचायें जी का दाधंनिंक के कारण रुप सर्व्न व्याप्त है । ब्रह्म ही जीव तथा जगत्‌ के रूप में आविशुत्त होता - है। यह सुष्टि ईर्वरछीला का. विकास है।. वल्लभाचारयं ने पुष्टिमाग का प्रवर्तन [१५ | शूज़ार का सुष्दर समन्वय, मिलन का आदंमसमपंण और विरह की विदव-द हुक तन्मयता दिखाई है भौर यहीं लोक-जीवन के प्रति उनका अनुराग देखते बनता है । जायसी का विरहुवर्णन ऊहात्मक न. होकर वेदनात्मक है । वियोग की दसों दद्याओं में नागमती की “उन्मादावस्था' का जो चित्र जायसी ने खींचा हैं, वह बड़ा हुदय- विदारक हैं । उसकी विरहु-पीड़ा ने पशु पक्षियों में भी संवेदना की तीव्र पीड़ा जाग्रत कर दी है--वे उससे पूछते हैं - “तु फिरि-फिरि दाहे सब पाँखी । केहिं दुख रैनि न लावसि भाँखीं ।'' न ः जायसी का रहस्यवाद मावात्मक था । कबीर में यदि. प्रतिमा थी तो जायसी में हृदय की मावुकता। रूप-सौन्दर्य के सृष्टि-व्यापी प्रभाव की लोकोसर कत्पना जायसी की अपनी विशेषता हैं। जायसी में परोक्ष सत्ता की मोर संकेत करने का आग्रह अधिक दिखाई पड़ता है । भम्रस्तुत की ओर संकेत देने बाले प्रसद्धों की उद्धावना जायसी ने बड़ी कुशलता के साथ की हैं । वपिहुल- गढ़, उसके बभीवे, मानसरोवर, नांगमती का बाह्य रूप वर्णन ऐसे स्थल हैं, जहाँ जायसी ने लॉकोत्तर सत्ता की ओर संकेत' करने के अवसर को हाथ से जाने हीं दिया हैं । ', इनकी माषा' ठेठ अवधी है। इन्होंने अतिशयोक्ति, सपमा, रूपक भादि मलंकारों का जमकर प्रयोग क्रिया हैं । न ं पं सगुण धारों-- की गिल कुष्णभक्ति साहित्य - उत्तर भारत में राधाकृष्ण की. भक्ति का शास्त्रीय ढंग से प्रतिपादन का प्रारम्भिक श्रेय मिम्बार्काचायं को है । किन्तु महाप्रश वल्लमाचायें के शुभागमन के बाद उत्तर भारत में कृष्ण भक्ति के साहित्य को एक नवीन माददें और नवीन प्रेरणा प्राप्त हुई। वल्लमाचायें के प्रभाव से कृष्णभक्ति की सरस धारा को छूकर बहुने वाली हवा के शीतल शौंकों ने ज्ञानियों के नीरस मानस सिद्धान्त 'गुद्धाईत' कहूजाता है. भर उसका आचरण पक्ष पुष्टि भार्ग के नाम से जाना जाता है। उनके अनुसार माया के सम्बन्ध से रहित होने के कारण ब्रह्म शुद्ध कहां जाता है और यहीं मायारहिंत' #वतन्त्र जहा इस चिष्व में कार्य तथा थक बे उछ. .




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