कला के पद्म भाग - 1 | Kala Ke Padm Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
161
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आज के संग्रहालयों की उपयोगिता
श्री राय कृष्णदास
दिक्षा के जो नए माध्यम प्रस्तुत हो रहे है, उनमे दृद्य वस्तुझ्नो के द्वारा दिक्षा का बहुत
महत्व है । जो बाते भ्रनेक प्रकार से समभ्ाने पर भी नहीं समझ पड़ती, झ्रॉँखो के सामने झ्ाते ही
मन उन्हे सहज ही ग्रहण कर लेता है । इसी कारण सिनेमा, टेलीविजन, चित्रित पुस्तकों, स्लाइडो
के साथ-साथ सग्रहालय भी श्राज शिक्षा प्रचार के साधन बन गए हें ।
यह नहीं समभना चाहिये कि इस प्रकार के दृद्यो के द्वारा शिक्षा केवल वयस्कों श्रौर
अ्रदिक्षितो के लिए उपयोगी है वरन् उच्च दिक्षा के लिए भी इन माध्यमों की भारी श्रावदयकतां
है । सग्रहालयों का इस प्रसंग में भारी महत्व है ।
सग्रहालयों के भिन्न-भिन्न विषय हो सकते है। कला-सग्रहालयों में विभिन्न शास्नों के
अॉकडे, दुश्य-वस्तुप्रो सम्बन्धी एवं वंज्ञानिक विषयों सम्बन्धी शिनत-भिनत वस्तुम्रो के प्रदर्शन होते
रहते है । वस्तुत सग्रहालयों मे जिन विषयों से सम्बन्धित वस्तुए प्रदर्शित की जाती है, उन सबका
उद्देश्य विषयों की. जानकारी प्रस्तुत करना होता है । मुख्य रूप से सग्रहायायों मे से चुनी वस्तुए
एकत्रित की जाती है, जिनके द्वारा एक ही स्थान पर विद्यार्थी भ्रनेक प्रकार की सामग्री ध्रध्ययन
के लिए प्राप्त कर लेता है । जो बस्तुए श्रतभ्य होती हे, उनके प्रतिरूप इकट्ठे किए जाते है । जिन
वस्तुप्रो के विपय मे जानकारी बतलानी होती है, उन्हे साथ में भ्रनेक प्रक्रियास्रो द्वारा प्रकट किया
जाता है । वस्वुभ्नो को इस प्रकार रकक््खा जाता हे कि श्रध्ययन करने में श्रसुविधा न हो, प्रकाश ग्रादि
की समुचित व्यवस्था करके उक्त वस्तुग्नो की विशेषताएं स्पष्ट को जाती है । कभी-कभी उपयुक्त
वातावरण उपस्थित करने के लिए पृष्ठ-भूमि मे समुचित विवरणो के द्वारा ऐसा दृध्य उपस्थित
कर दिया जाता है कि दशक कुछ क्षण के लिए म्रपने-प्ापको ही बिल्कुल भूल जाता हे । व्यूयाक
ने एक संग्रहालय में एक बहुत बडा हौज-सा बना है, जिसमे जल तो नही है परन्तु प्रकाश की
किरणों की ऐसी व्यवस्था है, जिसके द्वारा उसमे उतरते हुए से श्रनेक जलीय पशु ऐसे प्रकट होते
है मानो समुद्र मे तर रहे हो ।
सग्रहालयो की उपयोगिता बढाने के लिए विवरण पत्रों, लेबिलो, गाइडो सादि की व्यवस्था
की जाती है । इन सब का एक ही उद्देश्य होता है कि सम्रहालय मे जो वस्तुए प्रदर्शित की जाती
है उनका झथे श्रधिकाधिक रूप मे प्रकट हो । दूसरे शब्दों मे उनके द्वारा शिक्षा का प्रचार प्रधिक
से अधिक हो । इस प्रकार सप्रहालयों की उपयोगिता को बढाने के लिए श्राधुनिक से श्राधनिक
प्रयोग किए जा रहे है। श्रमेरिका मे दशकों को मामूली दर पर किराये पर ऐसे रेडियो रिसीवर
मिलते है, जिन्हे कान मे लगाकर दशक कला की वस्तुप्रो झ्ादि के सामने खड़े हो जाते है। इन
वस्तुझो के सम्बन्ध मे सारी व्याख्या उस यन्त्र मे सुनाई देती है । इतना ही नही जहा जीव-जस्तुप्नो
के प्रदर्शन है, वहा पृष्ठ-भूमि मे प्राकृतिक दृश्य देखने के साथ-साथ ऐसी ध्वनियाँ उस यत्र के द्वारा
ददंक को सुन पड़ती है जो उस वातावरण मे होती रहती है । इस प्रकार उन प्रदर्शित वस्तुभ्नो की
उपयोगिता श्रौर भी बढ जाती है ।
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