कवितावली | Kavita Vali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ बालकाण्ड
[ पर्झुरामजीने गरजकर कहा--] राजाओंकी. मण्डलीमें
जिसने शिवजीका प्रचण्ड धनुष तोड़ा है और जिसके भुजदण्ड चढ़े
प्रचण्ड हैं; मैं उसीसे कहता हूँ--मैं अपने कठिन कुठारकी धारकों
घारण करनेकी उसकी घीरता और प्रसिद्ध वीरता देखना चाहता
हू | वह राज-समाजकों छोड़कर आज अलग विराजमान हो जाय
अथातद् राज-समाजसे बाहर निकल आवे । जैसे हाथीकों सिंह
पकडता है, वैसे ही मैं उसे पकड़ंगा । मैंने प्रथ्वीपर राजाओंके छिपे
हर छोटे बालकश्दो भी नहीं छोड़ा; मैं राजाओंको मारनेकी उत्कृष्ट
कीर्ति घारण किये हुए हूँ ।
निपट निद्रि बोठे बचने छुठारपादि,
मानी त्रास ओनिपनि सानों सौनता गही |
रोप माखे लखडु अकनि अनखोद्दी बातें,
तुलसी विनीत बानी विद्सि ऐसी कही ॥।
सुजस तिहारं भरे भुअन श्रूगुतिलक,
प्रगट प्रताएु आए कद्यों सो से सदी ।
टुट्यो सो न जुरगो सरासलु महेसज्ञको,
रावरी पिनाकर्मे सरीकता कहाँ रही ॥१५९॥
जब परझुरामजीने अप्यन्त निरादरपूण वचन कहे; तब सब
राजाठोग भयभीत हो ऐसे चुप हो गये; मानो मौन ग्रहण कर छिया
हो । किंतु ऐसे अनखावने वचन सुनकर लदमणजी रोषमे भर गये
और हँसकर इस प्रकार नम्र वचन बोले--'हे भगुकुलतिरुक ! तुम्हारे
सुयदासे [ चौदहों ] भुवन भरे हुए हैं | आपने जो अपना प्रसिद्ध प्रताप
द्य० थे
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