कवितावली | Kavita Vali

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Kavita Vali by सीताराम - Seetaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ बालकाण्ड [ पर्झुरामजीने गरजकर कहा--] राजाओंकी. मण्डलीमें जिसने शिवजीका प्रचण्ड धनुष तोड़ा है और जिसके भुजदण्ड चढ़े प्रचण्ड हैं; मैं उसीसे कहता हूँ--मैं अपने कठिन कुठारकी धारकों घारण करनेकी उसकी घीरता और प्रसिद्ध वीरता देखना चाहता हू | वह राज-समाजकों छोड़कर आज अलग विराजमान हो जाय अथातद्‌ राज-समाजसे बाहर निकल आवे । जैसे हाथीकों सिंह पकडता है, वैसे ही मैं उसे पकड़ंगा । मैंने प्रथ्वीपर राजाओंके छिपे हर छोटे बालकश्दो भी नहीं छोड़ा; मैं राजाओंको मारनेकी उत्कृष्ट कीर्ति घारण किये हुए हूँ । निपट निद्रि बोठे बचने छुठारपादि, मानी त्रास ओनिपनि सानों सौनता गही | रोप माखे लखडु अकनि अनखोद्दी बातें, तुलसी विनीत बानी विद्सि ऐसी कही ॥। सुजस तिहारं भरे भुअन श्रूगुतिलक, प्रगट प्रताएु आए कद्यों सो से सदी । टुट्यो सो न जुरगो सरासलु महेसज्ञको, रावरी पिनाकर्मे सरीकता कहाँ रही ॥१५९॥ जब परझुरामजीने अप्यन्त निरादरपूण वचन कहे; तब सब राजाठोग भयभीत हो ऐसे चुप हो गये; मानो मौन ग्रहण कर छिया हो । किंतु ऐसे अनखावने वचन सुनकर लदमणजी रोषमे भर गये और हँसकर इस प्रकार नम्र वचन बोले--'हे भगुकुलतिरुक ! तुम्हारे सुयदासे [ चौदहों ] भुवन भरे हुए हैं | आपने जो अपना प्रसिद्ध प्रताप द्य० थे




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