कवितावली | Kavitavali

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Kavitavali by सीताराम - Seetaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बालकाण्डः श्रीजानकीजीकों जगत॒की माता और कल्याणखरूप श्रीरामचन्द्रको जगतके पिता जानकर मनमें ऐसे विचारकर देखो जिससे मुंहमें कालिमा न छगे । अनेकों विवाह देखे हैं, वेद-पुराण भी सुने ओर श्रेष्ठ साधु पुरुषोंसे तथा जो अन्य खी-पुरुष परीक्षा कर सकते हैं, उनसे भी पूछा है; परन्तु ऐसे समान समधी और समाजकी जोडी कहीं नहीं है, और न श्रीरामचन्द्रजीके समान दुलहा तथा श्रीजानकीजी-जेसी दुलहिन ही हैं। बानी बिधि गौरी हर सेसहूँ गनेस कही, सही भरी लोमस असुंडि बहुबारिषो । चारिदस भुअन निहारि नरनारि स नारदसो परदा न नारदु सो पारिखो ॥ तिन्ह कदी जगमे जगमगति जोरी एक दूजो को कहैया ओ सुनेया चष चारिखो । रमा रमारमन सुजान दनुमान कदी सीथ-सी न तीय न पुरुष राम-सारिखो ॥१६।। सरखती, ब्रह्मा, पार्वती, शिव, शेष ओर गणेराने कहा है ओर चिरञ्ीवी खोमश तथा काकमुशुण्डिजीने साक्षी दी है; जिन नारदजीसे कहीं पर्दा नहीं है ओर जिनके समान दूसरा कोई खी- पुरुषोंके लक्षणोंका जानकार नहीं है, उन्होंने भी. चौदहों भुंवनोंके समस्त खी-पुरुषोको देखकर यही कहा है. कि संसारमें एक श्रीराम- जानकीजीकी [ ही। ] जोड़ी जगमगा रही है। उनसे बढ़कर और कौन. चार आँखोंबाला .बतछाने और छुननेबाला है । खयं चमी




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