सन्मति महावीर | Sanmati Mahavir

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिग्दशेन साहित्य का एक रूप जीवन-चरित भी है। उससे चरित- लायक के व्यक्तित्व का परिचय मित्तता हैं। चरितनायक के भावों और विचारों का विशददीकरण ही वस्तुतः उसके ध्यक्तित का परिचय है। इसी इृष्टि से साहित्य से जीवन-चरित का एक विशिष्ट स्थान भाना गया है। एक विचारक के मत में, मनुष्य को पट्टिचानने के लिये साहित्य के ्न्य अंगों की झपेक्ता जीवत- चरिठ ही अधिक स्पष्ट तथा महत्वपूर्ण सहायता दे सकता है । सनुष्य के गुण चथाथ॑ रूप मे जीवन-चरित से ही प्रकट होते हैं । ज्ञो घटनाएँ उस पर घटती हैं, तथा जो उपाय वह कास मे लाता है-वे सब अनुभव हसे उसके जीवन-चरित मे सहज्ञ ही सिल जाते हैं '्रौर हम उनसे बहुत-झुछ लाभ उठा पाते हैं । जीवन-चरितत क्या है? किसी भी महापुरुष के द्ीर्घकालिक श्रुभवों की महानिधि । विकट संकट के 'वसर पर मतुष्य को क्या करना चाहिए? किस मकार वह झ्पने जीवन की उत्तभी समस्वाद्यो को खुलमाए ? किस समय कैसी वाणी वोले 1 किस पद्धति से वह अपने कतेव्य-कार्यो को करे ? ादि प्रश्तो का समाधान किसी भी महापुरुष के जीवनवरित को पढ़ने से सहज ही मिल जाता है। प्रस्तुत पुस्तक 'सन्मठि महावीर” भी एक लघुकाय ज्ञीचन-




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