श्रीचैतन्य - चरितामृत | Shrichaitanya - Charitamrit
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
463
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० शी तैतन्य-चरितामृत्त
इतना होने पर भी जो तर्क द्वारा श्री चैतन्य महाप्रभु के दर्शन को समझने .
के इच्छुक हैं, उनका स्वागत है। कृष्णदास कविराज गोस्वामी उन्हें इस प्रकार
सम्बोधित करते हैं, “आप महाप्रभु की कृपा की अग्नि-परीक्षा कीजिये और
यदि आप सचमुच तर्कशास्री हैं, तो इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि चैतन्य
महाप्रभु से अधिक कृपालु अन्य कोई व्यक्ति नहीं है। तर्कशास्त्रियों को
चाहिए कि वे. अन्य मानव कल्याणकारी कार्यों की तुलना चैतन्य महाप्रभु
के कृपामय कार्यों से करें। यदि उनका निर्णय निष्पक्ष है, तो वे यह समझ
जायेंगे कि श्री चैतन्य महाप्रभु के कार्यों से बढ़ कर कोई अन्य मानव-कल्याणकारी
कार्य नहीं है।
प्रत्येक व्यक्ति शरीर के अनुसार जन-कल्याण कार्यों में लगा हुआ है
किन्तु भ्रगवद्गीता से (२.१८) .पता चलता है अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ता:
शरीरिण:--भौतिक शरीर नश्वर है, जबकि आत्मा शाश्वत है। श्री चैतन्य
महाप्रभु के उपचारी कार्य शाश्वत आत्मा के निमित्त किये जाते हैं। किन्तु
यदि कोई. शरीर को लाभ पहुँचाना चाहता है तो वह तो नश्वर है और,
मनुष्य को अपने वर्तमान कार्यों के अनुसार दूसरा शरीर ग्रहण करना होगा।
अतएव जो व्यक्ति देहान्तरण के इस विज्ञान को नहीं समझता और शरीर
को ही सर्वेसर्वा मानता है, उसकी बुद्धि अधिक उन्नत नहीं होती। श्री चैतन्य
महाप्रभु ने शरीर की आवश्यकताओं की उपेक्षा किये बिना आध्यात्मिक प्रगति
प्रदान की जिससे मानवता का शुद्धिकरण हो सका। अतणएव यदि तर्कशासत्री
निष्पक्ष निर्णय करें तो वे पायेंगे कि चैतन्य महाप्रभु महावदान्यावतार हैं।
यहाँ तक कि वे कृष्ण से भी अधिक वदान्य हैं। भगवान् कृष्ण की यह
अपेक्षा थी कि लोग उनकी शरण में आयें किन्तु उन्होंने श्री चैतन्य महाप्रभु
के समान भगवत्प्रेम को वितरण नहीं किया। इसीलिए श्रील रूप गोस्वामी
ने श्री चैतन्य महाप्रभु को इन शब्दों में नमस्कार किया है--नमो सहावदान्याय
कृष्णप्रेम प्रदाय ते कृष्णाय कुष्णचैतन्यनास्ने गौरत्विषे नमः । भगवान् कृष्ण ने
एकमात्र भगवदूगीता प्रदान की जिससे कृष्ण को यथारूप समझा जा सकता
है, किन्तु श्री चैतन्य महाप्रभु ने, जो साक्षात् कृष्ण भी हैं, लोगों को बिना
किसी भेदभाव के कृष्ण-प्रेम प्रदान किया।
बहु जन्म करे. यदि श्रवण, कीर्तन ।
तबु त. ना. पाय कृष्णपदे प्रेमधन ॥1१६।।
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