हमारी राष्ट्रीय समस्याएं (१९४३ ) | 1304 Hamari Rastriya Samasyaen; (1943)
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मारत में रा्ट्रीयता १
भावों श्र व्यवद्दारों की इस अद्सुत् एकता से भारतवर्ष बहुत
प्राचीन काल में भ्रत्युल्त दो गया था। सामाजिक, शआयिक,
राजनेतिक आदि सभी विषयों में इस देश को शक्ति मद्दान थी |
यही कारण था कि यहाँ समय-समय पर जो अनेक नातियाँ झायीं, वे
यद्दीं जन-समुदाय में दिल-मिल गयीं, और शन्त सें यहाँ की ही दो
गयीं; अब यहाँ यूनानी, हुए, सीथियन झादि के स्वतंत्र अस्तित्व का
परिचय नहीं मिलता । आक्रमण करनेवाले व्यक्ति मित्र और बन्धु
बन गये | विजेता परालित द्ोगये, उनकी सतान ने भारत-संतान कदलाने
में गौरव अनुभव किया । यद बात झनेक शताब्दियों तक रद्दी ।
मध्य-युग की स्थिति-- पश्चात् परिस्थिति बदल गयी।
सम्राट अशोक के बाद यहाँ शातन सत्ता भी प्राय; निबंल व्यक्तियों के
अधिकार में ग्ड्ी । देश मिन्न भिन्न भागों में विमक्त हो गया, श्ौर
प्रत्येक प्रान् के आदमी झण्ने आपको श्न्य प्राम्तवालों से प्रथक
समभने लगे। इस प्रकार जब मुसक्षमान यद्दाँ आये भारतवर्ष की
एकता घट गयी थी, भारतीय समाज अस्वस्थ और रुग्न था । उधर,
मुसलमानों में उत्ताइ और साहठ था, और श्रपने नये घ्मे के प्रचार की
प्रबल मावना मी यी । मारतवर्ष का दिन्दू समाज मुख्लमानों को श्रपने
में मिलाने में अतमथे रहा; यही नदीं, क्रमशः उनकी विजय दोने
लगी । इसका कारण यह नद्दीं था कि यहाँ के सैनिक निर्बल्त थे, अथवा
वे युद्ध-कला में प्रवीश न थे । नहीं, व्यक्तिगत रूप से यहाँ वीरता
आदिकी कमी न थी, कमी थी, सगठन भ्रीर एकताके मावों की, लामूदिक
बल की, अथवा, संक्ेप में रा्ट्रीयता को । वीर श्रौर लाइसी राजपूतों
ने भपनी संकुचित या झनुदार इष्टि के कारण भारतवर्ष को
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