चोखे चोपदे | Chokhe Chopadey

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Chokhe Chopadey by अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' - Ayodhya Singh Upadhyay 'Hariaudh'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मासर में सागर 'हों कहाँ पर नहीं भलक जाते | पर हमे ग्तो द्रख: छा सपना ॥ कब छुआ सामथा नही, श्र हम. । कर सकें स्पमनि सु अपना... जा अंधेंस है बस जी में उसे । हम अंघेरे में कड़े खाते नही ॥ उस जगत की जात की भी जात के | जातवाले नख' श्रगर होते नहीं ॥ लेक को निज नई कला दिखला । पा. निराली दमक दमकता है ॥ दूज_का चन्द्रमा, नहीं है. यह। पद चमकदार लख चमकता है ॥ कर जब ' झासमान की रगत। पए'खितारे न रंग लाते हैं॥ ब्रनगिनत हाथ-फॉँच शाले के । मख,. जगा. जात जममगाते हे ॥




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