कविवर बनारसीदास | Kavivar Banarasidas ( Thesis )

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Kavivar Banarasidas ( Thesis ) by रवीन्द्र कुमार जैन - Ravindra Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भथम अध्याय एए्सूमि (श्र) राजनेतिक तथा ऐतिहासिक स्थिति मनुष्य भूखकी वेदना एक सीमा तक सह सकता है, परन्तु असामाजिक रहकर जीवन चला लेना उसकी शक्तिके परेकी बात हैं । समाजसे पृथक्‌ रहकर उसे न भोजनमें स्वाद आयेगा, न वस्योंसे मन प्रसन्न होगा भर न ही उसकी अगाघ घन-सम्पत्ति उसे सुखो बना सकेगी । अतः यदि मनुष्यत्व और सामाजिकताकों अन्पोन्याश्रयो कहा जाये तो अत्युक्ति न होगी । जितने क्षण हम समाजसे दूर रहते हूं--उनमें भो रूठकर, क्लुद्ध होकर अथवा परवदता वश ही सही हम अपने समाजका स्मरण करते हूँ । हमारा उपचेतन उसीके चिस्तनमें व्यस्त रहता है। निष्कर्पमें हम कह सकते हैं कि समाजसे पृथक्‌ मनुष्यका अस्तित्व नहीं बन सकता । पथओं- का भी एक सामाजिक जीवन होता है। वे परस्पर बैठते हैं, उठते हैं, खाते-पीते हैं, खेलते हैं । पारस्परिक सुख-दुःखमें भो यथासाध्य सहान- भूतिका परिचय भीद,देते हैं, फिर बुद्धि ओर भावनाओंका अक्षयकोष मानव मसामाजिक कैसे रह सकता है। जब मनुष्य मात्रमें सामाजिकता सुनिश्चित है, तंत्र एक विशिष्ट विद्वान, प्रतिभावान एवं भावविह्नुल साहित्यकारका जीवन, अवदय ही प्रगाढ़ रूपसे अपने युगके समाज और उसके जोवनको प्रभावित करेगा तथा. उससे स्वयं भी प्रभावित्त होगा ही । अतः किसी साहित्यकारके प्रामाणिक अध्ययनके लिए हमें उस युगके सामाजिक एवं राजनैतिक वात्याचक्रको भी समझना होगा । कविवर बनारसीदासने अपने जीवन-कालमें सम्राट अकबर जहाँगीर भोर शाहजहाँके साम्राज्य देखें थे। पूर्वजों-द्वारा बाबर और हुमायूंकी चर्चाएँ सुनी थीं । इस प्रकार औरंगज़ेबके अपवादके साथ प्राय: सम्पर्ण मुग़ल-कालके सर्वदोमुखी वायुमण्डलसे हमारे कविका सम्पर्क रहा है। जिन- पर मुगल साम्रज्यका स्वणमुकुट विशेष लादर और लोकप्रियताके साथ पृष्ठभूसि




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