भारत की आर्थिक प्रगति | Bharat Ki Aarthik Pragati
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
402
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दुर्गा दयाल निगम - Durga Dayal Nigam
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ भारव वी झार्थिक प्रगदि
प्रछिद रहा है । देश के रूमी प्रमुख उद्योगों के लिए क्ल्दा माल इन्हीं मैदान से
ही प्राप्त होता है । इन्हीं मैदानों में ही मारव के प्रदुख उद्योग केन्द्रित हैं श्रीर विभिन्न
प्रकार के यातायात के साघनों से मरपूर है । इन्हीं नेदानों की झार्थिक सम्पनता के
फुलस्वरूर यह के घन एव दैमद से आकर्षित हो कर विदेशियों ने दस देश पर
बार घार झाक्रमण किये जिसका प्रमाव हमारे राष्ट्र के झाधिक विकास पर पडता
रहा । समस्त विश्व को चक्ति कर देने वाले कवि, सठ, विद्वान एव दार्शनिक इन
मैदानों दी ही देन हैं । वास्तव में मैदान ही कली भी राष्ट्र क झा्थिक, सामाजिक
एवं सास्कठिक विकास क केन्द्र हैं ।
पल (910एशप105)
क्खी मी राष्ट्र वी द्यार्थिक सम्पन्नता में वहाँ के पहाड़ों का भी बहुत महत्वपूर्य
स्थान रहा है । पहाड़ी देशों के रहने वाले प्राय निघंन होते हैं। पहाड़ी भूमि होने क
कारण इषिं एव द्ापुनिक उद्योग घर्घों का विकास सम्भव नहीं होठा । आवागमन के
साधनों का विक्षास मी नहीं हो पावा। आवागमन के साधनों के श्माव
रुम्यदा में भी पहाड़ी लोगों का पाछे रहमा स्वाभाविव' ही है क्योकि उनका सम्पर्क
सभ्य चगत ले नहीं रद्द पादा । ज्त्विक राष्ट्र में मैदान के रहने वालों के लिए. पर्वत
एक शझमूल्य निधि हैं । प्राय सभी नदियों के थोत पंत ही हैं । इन्हीं नदियों पर कसी
भी राष्ट्र वी ्यार्थिक सम्पन्नता निमर हे । पदंत खनिज एव वनों के रूप में भी कसी
मी राष्ट्र बे झौद्योगिक मिसिं की नुख्य आआधार-शिला हैं ।
मारतवप में तो पहाड़ों का झयार्थिक विदास में श्र मी महत्वपूर्ण स्थान है
क्योंकि मानसून की वर्ण हिमालय की उत्तर पवमालाश्ों के कारण ही दोती है ।
यदि हिमालय पवठ न. होवा तो कदाच्ति् सारा भारत ही मद्सूमि होता | मारवदर्ष
उत्तर में ल्गमग १४५०० मील लम्बी तथा २०० मील नौड़ी द्विमाच्छादित पवत्र
मालाओं से घिंस डु्रा है। मध्य मास्त में विन्ध्याचल, सतपुड़ा तथा झ्रयावली वी
पहाड़ियाँ पाइ जाता हैं । दच्छिसी भारत के समुद्रवटीय मैदान पूर्वी श्ौर प्चिमी
घाट की पर्वतमालाश्रों से ।घरे हैं ।
उत्तरी दुर्गोम पर्वतमालाएँ. सदैव भाख को विदेशीय शन्रझ्ओों से रद प्रदान
करतो रही हैं । यही कारण है कि हिमालय को भारत का प्रहरी कहा गया है । विदेशी
झाक्मयों से रका प्रदान करके दिमालय ने भारतीय सभ्यता एव सस्कूति वी रदा वी
है। देश में शाति एवं सुरक्षा प्रदान करक हिमालय मे हमार देशवादियों को अपना
मौठिक एवं आध्यात्मिक दिकाठ के लिए. स्व अवसर प्रदान क्या है । यही नहीं
अर री
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