प्राड्मौर्य बिहार | Pradmaurya Bihar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४ ] झांधार पर इस ग्रन्थ का भ्रायोजन हुआ । तीसरा अध्याय महस्वपूण हे जहाँ आये और ब्रत्य-सभ्यता का विश्लेषण है । श्राय भारत में कहीं बाहर से नहीं झाये। श्रायों का भारत प्र झाफ्रमण की कल्पना किसी डवर मस्तिष्क को डपज है। झाय या मनुष्प का प्रथम डदगम मुबतान ( मूलस्थान ) में सिन्धु नदी के तट पर हुआ, जहाँ से वे सारे संसार में फल्ने । इन्हीं र्यो का प्रथम दल पूर्व दिशा की ओर आया श्रौर हस प्राची में उसौ ने बास्य- सभ्यता को जन्म दिया। काल्वान्तर में विदेध माधव को श्रध्यक्षता में श्रार्यों का दूसरा दुल पहुँचा झोर वेदिक এল का अ्रभ्युद्य हुआ । श्रायों ने ब्रात्यों को श्रपने में मलाने के धिर प्रत्येस्तोम को रचना की । यह स्ताम एक प्रकार से शुद्धि की याजन। थी, जिसके अनुसार भयंघमं मे चावाल्वरृद्धवनिता सभी विद्यार्थियों को दईक्षित कर लिया जाता था। आधुनिक युग में हस अध्याय का विशेष महत्त्व हो सकता है । द्वितीयखयड में बिद्दार के अनेक वंशां का सविस्तर वर्णन है। चतुर्थ भ्रध्याय में ङ मोयं लोतो मे इन वंशो का उढ्ल्लेख हू ढ़ निकाल्ला गया है, जिससे कोई इनकी प्राचीनता पर संदेह न करे । करुष ओर ककंखणड ( रारखणड ) के इतिहास से स्पष्ट हे कि यहाँ के झादिवासी सूयवंशी छत्रिय हैं जो अपने भ्रष्ट विनयाचार भर विद्ार के कारण पतित हो गये । अपनी परम्परा के अनुसार इनकी उत्पत्ति अजनगर या अयोध्या से हुई, जहाँ से करुष की डस्पत्ति कही जाती है । खरवार, ओराँव ओर मुण्ड इन्हीं करुप क्षत्रयों की संतान हैं। स्वर्गीय शरच्चन्द्र राय ने हन दो अध्यायों का संशोधन श्रच्छी तरष्ट किया था श्चौर उन्होने संतोष प्रकट किया था । यहाँ यह भी स्पष्ट हे कि प्राचीन काल से ही ककंखयड ओर मगधराज में বান্ত লর্সী খী भोर लोग आपस में सदा एक दूसरे की सहायता के लिए तत्पर रहते थे। कर्कंसणड या छोटानागपुर का पुरातत्त्व भ्रध्ययन महत्वपूर्ण हे, यद्यपि पुरातक्वविभाग ने इस विषय पर ध्यान कम्न ही दिया है। यहाँ को सभ्यता मोइन-जो-दुड़ो से मिज्नती-जुलती है । झन्तर केवल मात्रा का हे । सप्तम ध्याय में पुराणो क आधार पर वेशाली के महद्ाप्रतापी राजाओं का देतिष्टासिक वणन हे । सवत्र अतिशयो क्तियो का दुटकर्‌ अलग कर दिया गया है। पुराण- कथित उक्त राजवष को प्राड मद्दाभारत राजाओं के सम्बन्ध में श्रधानता नहीं दी गई है ; बयांकि इन उक्त राजवर्षा को देखकर इतिद्दासकार की बुद्धि चकरा जाती है। श्रतः प्रतिराज सध्यमान का भ्रवत्नग्ब लेकर तथा सम्रकाल्लीनता का आ्राधार लेकर इन्हें ऐतिहासिक स्थान देने का प्रयत्न है। काशीप्रसाद्‌ जायसवाल का हिन्दू पाल्िटी' लिच्छुवी गणराज्य पर बिरोष प्रकाश ढाल्वता है । आधुनिक भारतीय सवतंत्रस्वतंन्न जनतंत्र के लिए ज्ञिच्छुवियों की गणतंत्र समता, बन्धुता, स्वतंत्रता, सत्यप्रियता, निष्ठा तथा भगवान्‌ बुद्ध का लिच्छुधियों को उपदेश আহ্হা माना जा सकता दै। िच्छुवी अर वृजि शब्दौ की नृतन व्याख्य। की गईं है और गोधीवाद्‌ का मूत्र खनित्र की वनिक प्राथना में कज्ञकती हे | मह्लराष्ट्स्‍र अपनी प्रतिभा पराक्रम के सामने किसी को अपना पानी नहीं समता था। मललो ने भी राज्यवाद को गणराज्य में परिवर्तन कर दिया। विरेहराज्य का वर्णन बेदिक, पौराणिक और जातकों के झाधार पर है। मद्दाभारत युद्ध के बाद जिन २८ राजाओं ने परिथिल्ला में राज्य किया, वे अभी तक विस्मृति-सागर में ही हैं । मिथिल्ला की विद्वत्परम्परा तथा ख््री-शिक्षा का उच्च दृशं कयात हैं ।




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