जिणदत्त - चरित्र | Jinadatt - Charitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
307
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कविवर राजसिंह - Kavivar Rajsingh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पर प्राकृत, संस्कृत, भ्रपनश्न श एवं हिन्दी झ्रादि. सभी भाषाशों में कृतियां मिलती
है । 'श्रमिघान राजेन्द्र' कोश में इस कथा का उद्धव प्राकृत माषा में निबद्ध
भावश्यक कथा एवं झावश्यक चू्शि प्रंथों में बतलाया गया है* । यह कथा वहाँ
चक्षुरिन्द्रिय के प्रसंग पर कही गयी है क्योंकि जिनदत पाषाण की पुतली को
देखकर ही संसार की श्रोर प्रवृत्त हुआ था । प्राकृत भाषा में एक श्रौर रचना
नेमिचन्द्र के शिष्य सुमति गरिए की मी मिलती है* । संस्कृत भाषा में जिनदत्त
चरित्र श्राचायं गुणमद्र का मिलता है । यह एक उत्तम काव्य है श्रौर जिनदत्त
के जीवन पर भ्रच्छा प्रकाश डालने वाली एक सुन्दर कृति है । यह माराकचन्द्र
दि० जन पम्रंथमाला से प्रकाशित भी हो चुका है । इसके पश्चात् झ्रपश्न श भाषा
में 'जिशयत्त कहा' की रचना करने का श्रेय कविवर लाखू अथवा लक्ष्मण को
है जिन्होंने उसे संवत् १२४५७ में समाप्त की थी 3 । श्रपभ्रश मापा में रचित
यह रचना जैन-समाज में श्रत्यघिक प्रिय रही है अत: ग्रंथ भण्डारों में इस ग्रंथ
की कितनी ही प्रतियाँ उपलब्ध होती हैं । इसमें ११ संघियाँ हैं श्रौर जिनदत्त
के जीवन पर सुन्दर काव्य रचना की गई है । हमारे कवि रल्ह अथवा राजसिह
ने लाखू कवि द्वारा विरचित 'जिरयत्त कहा' अथवा “जिरायत्ता चरित' के
प्राघार पर नवीन रचना का सर्जन किया. जिसका उल्लेख उन्होंने अपने का य
के झन्त में बड़े झामार पुर्वक किया है” । रल्ह कवि ने लाख कवि द्वारा विरचित
१. बसन्तपुरे नगरे वसन्तपुरस्थ स्वनामख्याते श्रावके, झा. क. ।
वसन्तपुरे नगरे जियसत्तू राया जिरादत्तो सेट्टी, झ्राव, ५ अर ।
भरा. चू. (तत्कथा चक्षुरिन्द्रियोदाहरणे चक्खंदिय शब्दे तृतीय भागे-
११०५ पृप्ठे काउसग्गा शब्दे ४२७ प्रृप्ठे च प्ररूपिता) पृष्ठ संख्या १४९२
२. देखिये जिनरत्न कोश - पृष्ठ संख्या- १३४
३. देखिये डा० कासलीवाल द्वारा संपादित- प्रशरित संग्रह पृष्ठ
संख्या- १०१
४. मदद जोयउ जिणदत्ता पुराणु, लाखु विरयउठ झइस पमाणु ।
देखि बिसूरु रयउ फुइ एहू, हत्थालंब्रणु बुहयण देहू ।५४५०।।
पाच
User Reviews
No Reviews | Add Yours...