जिणदत्त - चरित्र | Jindutta - Charit

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jindutta - Charit by कविवर राजसिंह - Kavivar Rajsingh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कविवर राजसिंह - Kavivar Rajsingh

Add Infomation AboutKavivar Rajsingh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(२०१से२१६) सिंघल द्वीप का उस समय घनवाह्न नधिन्कैः বা था ।उसके श्रीमत्ती नाम की राजकुमारी थी जो एक भयकर व्याधिसे इत थी ¢. जो भी व्यक्ति रात्रि को उसका पहरा देता था, वही मृत्यु को प्रप्त हौ जाता था 1 इस कार्य के लिये राजा ने पहरे पर भेजने के लिये प्रत्येक परिवार को अवसर चाट रक्खा था । उस दिन एक सालिन के इकलौते पुत्र की वारी थी, इसलिये चह प्रात काल से ही रो रही थी । जिनदक्त उसके करुण विलाप को नहीं सह सका और उसके पुत्र के स्थान पर राजकुमारी कै पास स्वयं जाने को तैयार हौ गया । {२९७से२३े२) सायकाल को जव লই लिनदत्तं साज कौ पीडितं वन्या के पास पहरा देने गया, त्तो राजा उसे देखकर बडा दुखित हुआ भर राज- कुमारी की निंदा करने लगा। जिनदरत्त राजकुमारी से मिला । राजकुमारी ने उसके रूप, यौवन एवं आकर्षक व्यक्तित्व को देखकर उससे वापस चले जाने को प्रार्थना की । वे बातचीत करने लगे और इसी बीच में राजकुमारी को निद्रा आगयी । बातचीत के समय जिनदत्त ने उसके मुंह मे एक सर्प देख लिया । जब राजकुमारो सो गई, तो वह श्मशान मे जाकर एक नर-मु ड उठा लाया और उसे राजकुमारी की खाट के नीचे रख दिया श्रौर तलवार हाथ मे लेकर स्वय वही छिप गया। रात्रि को राजकुमारी के मुख में से वह भयकर काला सं निकला 1 वह॒ भरमुड के पास जाकर उसे उसने लगा । जिनदत्त ने जब यह देखा तो उसने सर्प को पूछ पकड कर घुमाया, जिससे वह व्याकूल होगया और फिर उसे पोटली मे बाँध कर नि झक सोगया । (२३३से२३६) प्रात होने पर राजा को जिनदत्त के जीवित रहने के समाचार मालूम पड़े तो वह तुरन्त ही कुमारी के महल मे श्राया भ्रौर सारी स्थिति से अवगत हुआ । राजा ने श्रीमत्ती के साथ जिनदत्त का विवाह कर दिया । कुछ दिनो तक वे दोनो वही सुखपूर्वक रहे भ्रौर जब जलयान चलने लगा तो वह भी राजा से श्राज्ञा लेकर श्रीमती के साथ रवाना हुआ । राजा ने विदा करते हुये उसे भ्रपार सम्पत्ति दी । ५ 1




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now