जिणदत्त - चरित्र | Jinadatt - Charitra

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Jinadatt - Charitra by कविवर राजसिंह - Kavivar Rajsingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर प्राकृत, संस्कृत, भ्रपनश्न श एवं हिन्दी झ्रादि. सभी भाषाशों में कृतियां मिलती है । 'श्रमिघान राजेन्द्र' कोश में इस कथा का उद्धव प्राकृत माषा में निबद्ध भावश्यक कथा एवं झावश्यक चू्शि प्रंथों में बतलाया गया है* । यह कथा वहाँ चक्षुरिन्द्रिय के प्रसंग पर कही गयी है क्योंकि जिनदत पाषाण की पुतली को देखकर ही संसार की श्रोर प्रवृत्त हुआ था । प्राकृत भाषा में एक श्रौर रचना नेमिचन्द्र के शिष्य सुमति गरिए की मी मिलती है* । संस्कृत भाषा में जिनदत्त चरित्र श्राचायं गुणमद्र का मिलता है । यह एक उत्तम काव्य है श्रौर जिनदत्त के जीवन पर भ्रच्छा प्रकाश डालने वाली एक सुन्दर कृति है । यह माराकचन्द्र दि० जन पम्रंथमाला से प्रकाशित भी हो चुका है । इसके पश्चात्‌ झ्रपश्न श भाषा में 'जिशयत्त कहा' की रचना करने का श्रेय कविवर लाखू अथवा लक्ष्मण को है जिन्होंने उसे संवत्‌ १२४५७ में समाप्त की थी 3 । श्रपभ्रश मापा में रचित यह रचना जैन-समाज में श्रत्यघिक प्रिय रही है अत: ग्रंथ भण्डारों में इस ग्रंथ की कितनी ही प्रतियाँ उपलब्ध होती हैं । इसमें ११ संघियाँ हैं श्रौर जिनदत्त के जीवन पर सुन्दर काव्य रचना की गई है । हमारे कवि रल्ह अथवा राजसिह ने लाखू कवि द्वारा विरचित 'जिरयत्त कहा' अथवा “जिरायत्ता चरित' के प्राघार पर नवीन रचना का सर्जन किया. जिसका उल्लेख उन्होंने अपने का य के झन्त में बड़े झामार पुर्वक किया है” । रल्ह कवि ने लाख कवि द्वारा विरचित १. बसन्तपुरे नगरे वसन्तपुरस्थ स्वनामख्याते श्रावके, झा. क. । वसन्तपुरे नगरे जियसत्तू राया जिरादत्तो सेट्टी, झ्राव, ५ अर । भरा. चू. (तत्कथा चक्षुरिन्द्रियोदाहरणे चक्खंदिय शब्दे तृतीय भागे- ११०५ पृप्ठे काउसग्गा शब्दे ४२७ प्रृप्ठे च प्ररूपिता) पृष्ठ संख्या १४९२ २. देखिये जिनरत्न कोश - पृष्ठ संख्या- १३४ ३. देखिये डा० कासलीवाल द्वारा संपादित- प्रशरित संग्रह पृष्ठ संख्या- १०१ ४. मदद जोयउ जिणदत्ता पुराणु, लाखु विरयउठ झइस पमाणु । देखि बिसूरु रयउ फुइ एहू, हत्थालंब्रणु बुहयण देहू ।५४५०।। पाच




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