अलका | Alakaa

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Alakaa by श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ अअलका में ताले लगा दें; दो; कुंजियों का गुच्छा ले श्राओ: ताले कहाँ हैं; क्या किया जाय बेटी; इस वक्त दुनिया पर यही झ्ाफ़त है; फिर तुम्हारी मा को गंगाजी पहुँचाने का बंदोबस्त करें । ' माता का नाम सुनकर; स्वप्न देखकर जगी-सी होश में आ सृत माता पर उसी की एक छोटी: क्षीण लता-सी लिपट गई । अब तक सहानुभूति दिखलानेवाला कोई नहीं था; इसलिये तमाम प्रवाह आँसुझों के वाध्पाकार हृदय में टुकड़े- टुकड़े फेले हुए एकत्र हो रहे थे । स्नेह के शीतल समीर से एकाएक गलकर सहख्र-सहख्र उच्छूवासों से अजख्र वषी करने लगे । महादेव स्वयं जाकर प्यारेलाल तथा उसकी ख्त्री को बुला लाया । ज़्मींदार के डेरे का नौकर गाड़ी साजकर ले चला । कुछ ओर लोग भी; इस महा विपत्ति में सहानुभूति दिखलाना धम है; ऐसा धार्मिक विचार कर); झाए । शोभा को माता से हटा; कोठरियों में सबके सामने ताले लगाकर प्यारेलाल ने कुंजी महादेव को दे दी। प्यारेलाल की ख्त्र शोभा को अपने साथ ले गई । उसके घर का कुल सामान एक पुर्ज में लिरूकर डेरे भिजवा महादेव उसकी मा की लाश गंगाजी ले गया । तमाम रास्ता यही निणुंय रहा कि शोभा को किसी तरह मुरलीधर के हवाले कर पॉँच-छः हजार की रक़म अपने दाथ लगाए। लोटकर शोभा की खुश-खबरी मालिक कसनमने के लिये सदर गया । शोभा से कह गया; उसकी




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