स्वदेश और साहित्य | Svadesha Aur Saahity

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Book Image : स्वदेश और साहित्य  - Svadesha Aur Saahity

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डॉ. महादेव साहा - Dr. Mahadev Saha

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शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय - Sharatchandra Chattopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ६ | हूं। लेकिन जहाँ न मानन की सहज प्रथा ही साहित्य की नवीनता है वहाँ अ्रशक्तों के सस्ते श्रहंकार तरुणों के लिये सबसे श्रयोग्य हें । (साहित्येर पथे प० १०१) पहले ही लिखा गया है कि “साहित्य धर्म' लिखकर कवि मलाया चले गये। इघर साहित्यकों में इस निबन्ध की श्रालोचना शुरू हुई। नरेशचन्द् सेनगप्त श्रौर दरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय ने भी इस बहस में भाग लिया था। शरतचन्द्र ने भी कवि के मत का खण्डन करने की चेष्टा की थी । उन्होंने रवीन्द्रनाथ की रचना में तकं. नहीं पाया श्रौर उसे 'रसरचना' कहा । रवीन्द्रनाथ ने भ्रपने निबन्ध में कहा था कि साहित्य सृजन प्रयोजन के म्रतिरिक्त सजन है, नित्य प्रयोजनीय वस्तुयें मनष्य के मन में रस उत्पन्न नहीं करती हें । इसका प्रतिवाद नरेशचन््ध श्र शरत्चन्ध दोनों ने किया ।* *रवीन्द्रनाथ का 'साहित्यधमं' बंगला मासिक 'विचित्रा' श्रावण, १३३४ बं० प० १७१-७५ में प्रकाशित हुमा था । नरेशचन्द्र सेन का उत्तर 'साहित्य- धर्मेर सीमान्त 'बिचित्रा' भादौ, १३३४ पृ० ३े८३े-३६० में । द्विंजेन बागची ने 'साहित्य धर्म र सीमान्त विचार' नामक एक लेख कवि के समर्थन में 'विचित्रा' श्रादिविन, १३३४, पु० ८७-४६ में लिखा । नरेशचन्द् ते साहित्य धमर सीमान्त” विचारेण उत्तर 'विचित्रा' ग्रगहन, १३३४ पृ ८९६२-९५ में इसका उत्तर दिया । शरत्चन्द्र का लेख 'साहित्येर रीतिनीति 'वंगवाणी' छठां वष जाश्वित, १३३४ पृ० २३७-४६ में प्रकाशित हुम्रा था । इसके वाद साहित्य में बेश्नाबरूपन, या यौन सम्बन्ध विदेशों से लाई हुई चीज है इसकी भी वड़ी कड़ी श्रालोचना हुई । दशरत्चन्द्र न इसका जवाब इस संकलन के साहित्य की रीति श्रौर नीति” नामक निबन्ध लिखकर दिया था । यह साहित्यिक कलह यही नहीं समाप्त हुश्रा । नरेशचन्द्र से काफी कड़ी बहस हुई । कवि श्रनुरोध में श्राकर या 0०9५!18॒८




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