राउलवेल और उनकी भाषा | Raaul Vel Aur Usakii Bhaashhaa

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Raaul Vel Aur Usakii Bhaashhaa by माताप्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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० राउल बेल श्र उसकी भाषा मुख्यतः यह रहा है कि शिलालेख में आने वाली समस्त भाषाओं का, जो कि सात नव्य भारतीय आय भाषाओं के प्राचीनतम तत्व प्रस्तुत करती हैं, निरूपण हो सके, उनका तुलनात्मक अध्ययन हो सके, जिनका नाम उनकी नायिकाओं की प्रादेशिकता का उल्लेख नष्ट हो जाने के कारण ज्ञात नहीं है, उनका नाम निश्चित किया जा सके और सबसे अधिक इस बात का निश्चय किया जा सके कि रचना की सामान्य भाषा भी कोई है या नहीं, ओर है तो वह कौन-सी है। आशा है कि भाषा-विषयक प्रस्तुत अध्ययन को इसी दृष्टि से देखा जायगा। मुझे हष॑ है कि हमारी भाषाओं के इतिहास की इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण नवीन उपलब्धि से यह प्रमाणित हो जाता है कि हिंदी, और हिंदी की भांति हो कुछ अन्य नव्य भारतीय आयें भाषाएं भी, ग्यारहवीं शती ईस्वी में इतनी प्रौढ़ हो चली थीं कि उनमें सरस काव्य-रचना हो सकती थी, वे केवल बोलचाल की भाषाएं नहीं रह गई थीं । अनेक विद्वान हिन्दी और इसी प्रकार अन्य नव्य भारतीय आयें भाषाओं का विकास कुछ पहले से मानते हुए भी साहित्य में उनका प्रयोग सं० १४०० के पूर्व नहीं मानते । इस लेख के नख-शिख-काव्य ने उनकी इस धारणा को भली-भाँति निमूल प्रमाणित कर दिया है, जो कि ग्यारहवीं शती का पुरानी कोसली क! व्याकरण “उक्ति- व्यक्ति-प्रकरण' नहीं कर सका था। इस पुस्तक के रूप में अपना अध्ययन प्रस्तुत करने के लिए १ जनवरी, १९६१ को मैंने शिलालेख को बम्बई जाकर देखा, तो ज्ञात हुआ कि ऊपर तथा नीचे की एक-एक पंक्ति तथा नीचे के दाहिने कोने का पुष्प उसके फ्रम में दबे हुए हैं और बाई ओर ऊपर के कोने का टुकड़ा ग़लत चिपकाया हुआ है। इसके अतिरिक्त ऊपर तथा नीचे की पंक्तियों के अक्षर शिलाखंड को चिपकाने के लिए लगाई गई सीमेंट से भरे हुए हैं । यह देखकर मैंने म्यूजियम के डाइरेक्टर डॉ ० मोती चन्द्र जी से जब उस फ्रेम को हटवा कर ऊपर तथा नीचे की पंक्तियों के अक्षरों में भरी हुई सीमेंट को निकलवाने का अनुरोध किया तो उन्होंने तत्काल अपने गैलेरी एसिस्टेंट श्री बी० वी० छोटी, एम० ए० को इस कार्य के लिए नियुक्त किया, जिन्होंने अत्यन्त तत्परता से शिलालेख का फ्रेम हटवा कर अक्षरों में भरी हुई सीमेंट स्वयं खुरच-खुरच कर निकाली । इस कार्य से दो अत्यन्त महत्वपूर्ण तथ्य प्रमाणित हुए : एक तो यह कि लेख इसी दिलाखंड पर प्रारंभ और समाप्त हुआ है और दूसरे यह कि लेख किसी शासन आदि के रूप में नहीं उत्की्ण हुआ है। लेख के आदि में आए हुए '[ऊं] नमः सिद्धु[म्य:]' ने लेख का प्रारंभ निरविवाद




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