समन्वय | Samanvay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ उत्सवों के प्रकार | सम० मुके सचमुच व्याख्यान देने का श्रभ्यास नहीं । इस प्रकार से सभा मे बोलने मे बहुत श्रम श्रौर थकावट मानता हूँ, श्रौर उस पर श्रधिक कठिनता यह है कि भंगट के कामों से श्रवकाश भी नहीं कि कुछ अध्ययन कर के, कुछ सोच-विचार के, व्याख्यान की सामग्री एकत्र करूँ । श्राज ही कथंचित्‌ घंटे दो घंटे मे एक दो पुराण उलट-पलट कर, गणेश जी की कथा कुछ देख पाया हूँ । गणुपति- उत्सव म गणपति की कथा ही कहना उचित है । ड् उत्सत्र और हिन्दू धरम छात्रों को विशेष कर, श्रौर मनुप्यमात्र को सामान्यतः, उत्सव बहुत प्रिय होते हैं । खेल, मन-बहलाव, किस को नहीं ्रच्छा लगता ? सब देशों मे, सब जातियों मे, किसी न किसी बहाने से उत्सव मनाये जाते हैं । मुस्लिम बस्तियों मे इद, शबेबरात, बारावफ़ात, मौलूद, मुहरंम श्रादि के नाम से; पच्छिम के इंसाई देशों में ईस्टर, क्रिसमस, कार्निवल, पघुड़टौड़, नावदौढ़, श्रादि के व्याज से; श्रौर थियेटर, सिनेमा, तो बड़े शहरों मे हर रात जारी रहते हैं, जैसा अब सभी देशों मे हो चला है । यहाँ की भी पुरानी प्रथा रही है कि उत्सव प्राय: धर्म के नाम के संबन्घ से मनाये जायेँ । प्रसिद्ध है कि हिंदू का खाना, पीना, सोना, जागना, उठना, बैठना, छींकना, खाँसना, रोज़गार, व्यवहार, सभी धर्म के नाम से होता है । यहाँ तक कि चोरी श्रौर ठगी भी भवानी की पूजा कर के ्रौर श्रच्छा मुहूर्त देख के चोरधर्मशास्त्र के अनुसार होती रही है । महामहोपाध्याय श्री हरप्रसाद शास्त्री को सचमुच एक चोरघमंशास्त्र की, संस्कृत मे; प्राचीन पुस्तक मिली । यदि “घर्म' का श्रर्थ देतुयुक्त, कार्यकारण-सम्बन्ध के अनुसंघान से पूर्ण, लोक-“घारक:', लोक-संग्राहइक सत्कर्मोपयोगी ज्ञान समभका जाय, जो ही *सायंस' श्रौर शास्त्र का भी सच्चा रथ है, तो प्राचीन और नवीन भावों का समन्वय हो जाय; यथा सब ही कर्म, सब ही त्राह्मर, विहार, व्यवहार, “धर्म” श्रर्थात्‌ “सायंस” अर्थात्‌ दृष्ट- अदृप्ट-फलबोघक सजुज्ञान सच्छास्त्र के अनुसार होना ही चाहिये । अस्त । उत्सबों का धर्म से इस देश मे घनिष्ठ सम्बन्ध बहुत काल से हो रहा है । यदि सूची तैयार की जाय तो स्यात्‌ वर्ष के तीन सौ पेंसठ दिनो के लिए कम से कम सात




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