नया मार्ग | Naya Marg

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Naya Marg by सत्यप्रकाश संगर - Satyaprakash Sangar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिकार - श्र लीलावती के ब्रसुभ्ों ने साहब का क्रोध शास्त कर दिया । वह श्रपनी ज्यादती महसूस करने लगे, किन्तु उन्होंने सहज ही परास्त होना स्वीकार नहीं किया । स्वर की उम्रता ज्यों-की-त्यों रखते हुए लापरवाही से बोले-- “इन्हें जरा-सी सच्ची बात कह दो कि बस झाँसू बहाने लगेंगी, जैसे में इन शराँसुग्रों से डर जाऊंगा ।”” तू क्या ताक रहा है रे ?” इस बार का निश्यांना सतीश था, खाना क्यों नहीं खाता ?”” पिता का लक्ष्य सहसा श्रपनी झ्रोर देखकर सतीश घबरा उठा । जल्दी में उसने खानें की श्रोर हाथ बढ़ाया तो हाथ पानी के गिलास से जा टकराया । गिरते हुए गिलास को सँभालने में हाथों का जो एक हलका भठका लगा तो पानी का लोटा लुढ़क गया श्रौर पानी कटोरियों श्रौर थालियों में तैरने लगा । साहब बहादुर श्रब श्रपने झापे में नहीं रह सके । उनका गुस्सा भोले सतीश पर उत्तर प्राया । बेचारी लीलावती में भला इतना साहस कहाँ था कि बहु पुत्र की सहायता करती । वह श्रपनी खेर मना रही थी । इधर सतीश के बाद प्रमिला का नम्बर श्राया । झभी तक इस श्रकाण्ड ताण्डव को देखकर वह इतनी सहम-सी गई थी कि बोल भी न सकी । उसकी चुप्पी देखकर साहब ने उसे डाँटना शुरू किया, “'तु बयों ग़ुमसुम बैठी है ? भूख नहीं है तो यहाँ बैठने से क्या प्रयोजन ? व्यथे नष्ट करने को हमारे पास शर्त नहीं है । उठ जा यहाँ से, नहीं तो मारन्मारकर कच्ूपर निकाल दूंगा ।” फिर लीलावती को. सम्बोधित करके बोले, तुम लोगों ने तो माक में दम कर रखा है ।” सकस्मात जाने उन्हें कया सुक्ती श्रौर उन्होंने पुकारा, “रहीम ! ” हुद्ुर !” “'हुमारी बन्द्रक निकालो । हम पैदल ही चलेंगे ।' साहब, छोटे साहुंब बन्दूक भी तो साथ ले गए हैं ।””




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