अफ्रीका का आदमी | Afrika Ka Aadami

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Afrika Ka Aadami by सत्यप्रकाश संगर - Satyaprakash Sangar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्७ [ अफ्रीका का ादमी स्थिति तो चिगड़ी हुई है परन्तु इस के विदेशी -प्रतिनिधि इस के गोरव को इसरे देशों में चार चाँद लगाये हुये है।” “इसका कारण ?” “नेहरु का चुनाव । इस देश का नाम दूसरे देशों में चमक रहा है श्ौर ापके शेष नेता... * ” परन्तु पंजाब की राजनीति के विपय में शाप की क्या सम्मति हे ?” मैंने जान बूभ क्र उन्हें कारों में घसीटते छुम्े कद्दा । 'प्यद्दी कि साम्प्रदायिक नेताओं को कन्सेन्ट्रेशन केस्पो में सेज देना चाहिये ।” परन्तु दमारे देश में तो प्रजातन्त्र है,” मैंने विरोध फिया। “यदि उन्हें जला से वादर रगा गया तो प्ज्ञातन्त्र समाप्त हो जायगा ।” ' केसे?” प्जातन्च की श्ाइ़ से ये लोग गजब की बाते करते ने खिस-राज्य की स्यापना । अर नीचे स्तर की लचर युन्यि पेश करने हैं। पाकिस्तान के निर्माण से इन लोगों ने कोर शिक्षा यदग नहीं की । शरीर फिर यदि स्िखन-स्टेट का चनना श्रावण्यक हैं, तो पारसी, जैनी, ईसाई, दरिजन व्यादि श्ाति क्यो ने श्पनी श्रपनी स्टेट के लिये सांग पेश यरें फिर श्राज् शान्ति, मेलजोल वीर परे उत्पन्न फर से स्यन पर ये लाग घ्गा को शाग्नि प्रदीप कर रहे ६ । क्यल सखिसय ही नहीं, दिट मी इस राग को शनापतें दैं। शरीर अपचय की बात तो यह है कि सुसलमान भी । मेने के उदू थे समाचार पत्र पट श्रीर लग रह गया । झाज मी । नि




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