हिन्दी नाटकों पर पाश्चात्य प्रभाव | Hindi Natakon Par Pashchaty Prabhav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न हें च दोक्सपीयर के नाटकों के साहित्यिक 'प्रनुवाद ८दै भारतंन्दुकालीन नाद्यशंली पर पाइचात्य प्रभाव पट सारांदा ९१ तृतीय भ्रध्याय द्विवेदी युग (१९०३--१९२०) ६ र-१२८ सामाजिक तथा राजनीतिक पृष्ठभूमि €४ सामाजिक यथाधंवादी परम्परा ९७ व्यंग्य तथा प्रहुसन ९€ इ्िवेदीकालीन भ्रसुदित नाटक १०३: बंगला नाटककारों के नाटकों के श्रबुवाद १०१ द्विजेन्द्रलाल राय १०१ टैगोर के बंगला नाटक श्र उनके हिन्दी भ्रचुवाद ११० देक्सपीयर के नाटकों के हिन्दी श्रबुवाद र१२ हिन्दी प्रहसन श्रौर मोलियर के नाटकों के भ्रनुवाद ११७ सोलियर के नाटकों के सूल फ्रंच से श्रनुवाद ११८ 'बतिया चला नवाब की चाल' श्श्८ राव बहादुर १२० श्री ज्वालाप्रसाद श्रीवास्तव द्वारा मोलियर के नादकों के श्रनुवाद १२१ श्री जी० पी० श्रीवास्तव के मोलिक नाटक शेप पारसी कंपनियों के लेखक १२७४ सारांश २८ चतुर्थ अध्याय प्रसाद-युग के नाटकों में पाइचात्य परम्परा का अझनुस रस १२९--१७४ जयदाकर प्रसाद और उनके नाटक १२९, फ्रसाद युग के झन्य नाठककार ४२ हरिकृष्ण प्र मी १४२ गोविन्दवल्लभ पंत श्थ्द ब्रेचनशर्मा 'उंग्र' श्५्१




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