सोहागबिन्दी तथा अन्य नाटक | Sohagabindi Tatha Any Natak

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Sohagabindi Tatha Any Natak  by पं गणेशप्रसाद द्विवेदी - Pt. Ganeshprasad Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहागबिन्दी बाबू--ग्राई तो श्राख़िर। श्राज सिफ॑ सवा घटे लेट हैं । हम यहीं हैं । देखो, श्रगर कोई उतरे तो टिकट यही मॉग लाना । कौन जाय । [बाबू फिर छुर्सी पर बैठ- कर हुक्का सेँभालते है । महदराज हरी और लाल दो मडियाँ लेकर बाहर जाता है । बाहर गाड़ी का शब्द और साथ ही गाड़ी छूटने की सीटी ।. [महदराज एक अजनबी के साथ भीतर घुसता है ! अजनबी करीब २५ ब्ष॑ का सुन्दर युवा है और अच्छे कपडे पहने है। देखने से कालेज का विद्यार्थी जान पडता है । खाकी निकर, ऊनी होज, कनवास का जूता, कालरदार बनियाइन और नीला ब्लेजर पहने हैं। श्राधु- निक फैशन के लम्बी कलमवाले बाल कटे है। हाथ मे एक चमडे का सेंकोला सूटकेस है ।] झगन्तुक--मेने कहा, काली मैया को झ्ादाब श्रर्ज है | [कहकर सुसकुराता हुआ एक श्र खडा रह जाता है। काली बाबू की तन्मयता भग होती है और ऊपर सिर उठाते ही पहचानकर बडे तपाक से मिलते हैं] काली बाबू--श्ररे विनाद ! झोफ श्रोह--मला इतने दिन बाद ठुमने खबर तो ली ! द्‌




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